केंद्र को बैकफुट पर धकेलने को चला दांव
राज्य ब्यूरो, देहरादून
राज्यपाल पद से हटाए जाने का दबाव बनाने के मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने के बाद राज्यपाल डा अजीज कुरैशी ने खुद को गुरुवार को जिस तरह रुड़की में पिरान कलियर दरगाह और हज हाउस के मुआयने तक सीमित रखा, उसके सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। माना जा रहा है कि उत्तरप्रदेश के राज्यपाल के अपने बेहद छोटे कार्यकाल में जौहर विश्वविद्यालय को मंजूरी देने के मुद्दे को जवाबी हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, ताकि केंद्र को बैकफुट पर लाने की राह अधिक आसान हो सके। वैसे भी डा कुरैशी यह स्वीकार कर चुके हैं कि उन्हें उक्त विश्वविद्यालय के लिए श्रेय लेने से कोई परहेज नहीं है।
केंद्रीय में भाजपानीत सरकार आने के बाद कांग्रेस पृष्ठभूमि के राज्यपालों को हटाने के लिए बनाए जा रहे दबाव को कांग्रेस मुद्दा बना चुकी है। कांग्रेस शासनकाल में बने राज्यपाल पद से हटाने की केंद्र सरकार की कोशिशों की मुखालफत कर चुके हैं। इस कड़ी में अल्पसंख्यक समुदाय से ताल्लुक रखने वाले राज्यपाल डा अजीज कुरैशी भी केंद्र सरकार की ओर से बनाए गए दबाव का हवाला देने के साथ ही इस्तीफे से साफ इन्कार कर दिया था। राज्यपाल पद को संवैधानिक और राजनीति से ऊपर बताते हुए डा कुरैशी केंद्रीय गृह सचिव की ओर से इस्तीफा देने के दबाव को प्रताड़ना करार दे चुके हैं। राज्यपाल डा कुरैशी के हालिया कदम के बाद यह साफ हो गया है कि वे इस मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेरने की तैयारी कर चुके हैं।
यही नहीं राज्यपाल पद से हटाए जाने की कवायद को उन्होंने उत्तरप्रदेश में जौहर विश्वविद्यालय को अनुमति देने के मुद्दे से जोड़ दिया है। 'जागरण' से बातचीत में वह कह चुके हैं कि उक्त विश्वविद्यालय के मुद्दे पर उनका पद चला भी जाए तो उन्हें मलाल नहीं होगा। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई होने से पहले और बाद में राज्यपाल ने मीडिया से दूरी बनाए रखी। दोपहर करीब सवा बारह बजे वह राजभवन से रुड़की के लिए रवाना हुए। वहां वह पिरान कलियर दरगाह गए। इसके बाद उन्होंने वहां हज हाउस का मुआयना भी किया। बीती बुधवार रात्रि भी राज्यपाल डा कुरैशी ने पिरान कलियर दरगाह पहुंचकर चादर चढ़ाई थी। राज्यपाल ने गुरुवार को खुद को उक्त दोनों स्थानों तक सीमित रखा। इससे उनकी रणनीति को लेकर कयास लगने शुरू हो गए हैं। सुप्रीम कोर्ट में मामला जाने के बाद यह मुद्दा अब प्रदेश तक सीमित न होकर राष्ट्रीय फलक तक पसर गया है। राज्यपाल के स्टैंड ने कांग्रेस को अल्पसंख्यकों के बीच भुनाने के लिए एक और मुद्दा मुहैया करा दिया है।