'सरकार', आपदा से भी नहीं लिया सबक
विकास धूलिया, देहरादून
गत वर्ष की प्राकृतिक आपदा के बाद पुनर्निर्माण कार्यो को लेकर भले ही कितना हो-हल्ला हुआ लेकिन हकीकत यह है कि आपदा पीड़ितों के लिए बनाए जा रहे लगभग ढाई हजार भवनों के निर्माण पर सवालिया निशान लग गए हैं। सरकार के डिजाइन के आधार पर बन रहे इन भवनों के आधे निर्माण के बाद यह तथ्य सामने आया है कि इनमें भूकंपरोधी तकनीक का इस्तेमाल और विश्व बैंक के मानकों का पालन तो किया ही नहीं गया। नतीजतन, अब इन भवनों में रेट्रोफिटिंग की जरूरत आन पड़ी है। यानी, सरकारी मशीनरी की लापरवाही का एक और नमूना।
गत वर्ष की भीषण प्राकृतिक आपदा के बाद राहत एवं पुनर्निर्माण कार्यो के लिए राज्य सरकार ने लगभग 13 हजार करोड़ का प्रस्ताव बनाकर भारत सरकार को भेजा। केंद्र ने इसके लिए तीन मदों में धन की व्यवस्था की। एसडीआरएफ से लगभग 1800 करोड़ रुपये, स्पेशल प्लान असिस्टेंस के तहत लगभग आठ विभागों को 2400 करोड़ रुपये और विश्व बैक व एडीबी से लगभग सात हजार करोड़ रुपये। विश्व बैंक से ऋण के रूप में मिलने वाली धनराशि से ही आपदा पीड़ितों केलिए लगभग ढाई हजार भवनों के निर्माण का फैसला किया गया।
पहले सरकार ने पांच लाख रुपये की लागत से प्री फेब्रिकेटेड हट्स बनाने का निर्णय लिया लेकिन स्थानीय लोगों ने इसकी बजाए स्वयं भवन निर्माण की मांग की। इस पर सरकार ने प्रति परिवार पांच लाख रुपये की धनराशि तीन किश्तों में देने का फैसला किया। तय किया गया कि भवनों का भूकंपरोधी डिजाइन सरकार का होगा। एक गैर सरकारी संस्था की निगरानी में पीड़ित इन भवनों का निर्माण स्वयं कराएंगे। शासन के सूत्रों के मुताबिक इसके लिए संस्था को चार करोड़ की धनराशि कंसलटेंसी के रूप में दी गई।
आपदा पीड़ितों के लिए ये आवास अब तक आधे से ज्यादा बन चुके हैं लेकिन अब यह तथ्य प्रकाश में आया कि इनके निर्माण में भूकंपरोधी तकनीक का इस्तेमाल तो किया ही नहीं गया। यानी, आपदा के लिहाज से अत्यंत संवेदनशील क्षेत्रों में भवन निर्माण के लिए जरूरी तथ्य को ही भुला दिया गया। वह भी तब, जबकि डिजाइन सरकार का था। अब आनन-फानन इस सभी अर्द्ध निर्मित भवनों में रेट्रोफिटिंग कराने का निर्णय लिया गया है।
इनसेट-एक
क्या है रेट्रोफिटिंग
रेट्रोफिटिंग पुराने भवनों को भूकंपरोधी बनाने की तकनीक को कहा जाता है। अमूमन जानकारी के अभाव में संवेदनशील क्षेत्रों में भी हाल तक बगैर भूकंपरोधी तकनीक के इस्तेमाल के ही भवन बनाए जाते थे। इन्हें अब इस रेट्रोफिटिंग तकनीक की सहायता से भूकंपरोधी बनाया जाता है।
इनसेट-दो
'प्रदेश में पिछले साल आई आपदा के बाद फरवरी में एक एनजीओ से मकानों के निर्माण कार्यो की जांच को लेकर एमओयू साइन हुआ था। इस दौरान कई लोग अपने घरों का कार्य शुरू कर चुके थे। अभी 300 मकान ऐसे मिले हैं, जिनमें वर्ल्ड बैंक के मानकों के अनुसार कार्य नहीं हुआ है। इनकी अभी दूसरी किश्त का भुगतान रोका गया है। इन मकानों में अब रेट्रोफिटिंग के विशेषज्ञों से भवनों को भूकंप रोधी व वर्ल्ड बैंक के मानकों के अनुसार बनाने का काम कराया जाएगा।'
-अमित नेगी, सचिव, लोक निर्माण विभाग।