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दून, हरिद्वार और ऊधमसिंहनगर में भी दौड़ेंगी सीएनजी बसें, जानिए

उत्तराखंड में भी देहरादून के साथ ही हरिद्वार और ऊधमसिंहनगर में रोडवेज बसें सीएनजी पर दौड़ेंगी।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Fri, 18 Jan 2019 04:12 PM (IST)Updated: Fri, 18 Jan 2019 08:44 PM (IST)
दून, हरिद्वार और ऊधमसिंहनगर में भी दौड़ेंगी सीएनजी बसें, जानिए
दून, हरिद्वार और ऊधमसिंहनगर में भी दौड़ेंगी सीएनजी बसें, जानिए

देहरादून, अंकुर अग्रवाल। एनसीआर की तर्ज पर अब उत्तराखंड में भी देहरादून, हरिद्वार और ऊधमसिंहनगर में रोडवेज बसें सीएनजी पर दौड़ेंगी। सरकार ने अगले एक साल में इन तीनों जनपदों में रोडवेज बसों को सीएनजी पर संचालन के लिए तैयारी कर ली है। पहले चरण में दस अनुबंधित सीएनजी बसें चलाने की तैयारी है। इसके लिए रोडवेज ने कई कंपनियों से बातचीत की है और करार लगभग फाइनल हो चुका है। बसों के लिए सीएनजी फ्यूल का इंतजाम भी कंपनी ही करेगी। दस बसों के ट्रायल का परिणाम सफल होने पर आगे की कसरत की जाएगी। सरकार की कोशिश इन तीनों जनपदों में सभी रोडवेज बसों को सीएनजी पर संचालित करने की है। प्रदूषण के स्तर को कम करने व स्मार्ट शहरों की परिकल्पना को साकार करने में यह कदम कारगर साबित हो सकता है। 

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उत्तराखंड में रुद्रपुर, काशीपुर व हरिद्वार ऐसे शहर हैं, जहां औद्योगिकीकरण दून से अधिक है। बावजूद इसके दून वायु प्रदूषण में कोसों आगे है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की रिपोर्ट में उत्तराखंड के दून समेत छह शहरों में वायु प्रदूषण के स्तर का आंकलन किया गया। दून में 241 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर प्रदूषण दर्ज किया गया। वायु प्रदूषण में रुद्रपुर में भी पीएम-10 का स्तर 142 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है। इसके बाद तीसरे स्थान पर हरिद्वार में वायु प्रदूषण का ग्राफ 129 है। चौथे स्थान पर हल्द्वानी में 128 और पांचवें स्थान पर काशीपुर 126, छठे स्थान पर ऋषिकेश में वायु प्रदूषण का स्तर 119 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है। इन पांच शहरों भले ही वायु प्रदूषण मानक (60 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर) से अधिक हो, मगर दून में स्थिति सबसे भयावह है। इससे पता चलता है कि राज्य के इन शहरों में  जिस अनुपात में शहरीकरण बढ़ रहा है, उससे कहीं ज्यादा तेजी से प्रदूषण का स्तर भी बढ़ता जा रहा है। 

अकेले देहरादून पर नजर दौड़ाएं तो यहां राजधानी बनने के बाद वाहनों का आंकड़ा तेजी से बढ़ा। यहां हर साल 54 हजार के करीब नए वाहन पंजीकृत हो रहे हैं, जबकि कुल वाहनों की संख्या आठ लाख पार हो चुकी है। वाहन मानक से अधिक धुआं न उगलें, इसके लिए कार्रवाई की जिम्मेदारी परिवहन विभाग को दी गई है। यह अलग बात है कि विभाग ने इस ओर गंभीरता से ध्यान ही नहीं दिया। यही वजह है कि गत वर्ष सरकार ने बजट में तीनों प्रमुख शहरों में सीएनजी रोडवेज बसें चलाने का एलान किया था। अब एक साल बाद रोडवेज इसे धरातल पर उतारने जा रहा है।   

सीएनजी पंप न होना मुसीबत 

प्रारंभिक तौर पर भले रोडवेज सीएनजी बसों के फ्यूल की जिम्मेदारी बस आपूर्ति करने वाली कंपनी पर डाल रहा हो लेकिन प्रदेश में सीएनजी फिलिंग पंप न होना एक बड़ी मुसीबत बना हुआ है। सरकार ने गत वर्ष एलान किया था प्रदेश में सीएनजी पंप खोले जाएंगे लेकिन यह कसरत अभी पूरी होती नजर नहीं आ रही। 

जल्द आएंगी 50 नई इलेक्ट्रिक बसें 

मसूरी व नैनीताल में इलेक्ट्रिक बसों का ट्रॉयल सफल होने के बाद परिवहन निगम ने 50 नई बसों का करार कंपनी के साथ कर लिया है। सभी बसें अनुबंध पर चलाई जाएंगी। रोडवेज प्रबंधन के अनुसार इनमें 25 बसें देहरादून जबकि 25 बसें नैनीताल में संचालित होंगी। बसों को पर्वतीय मार्ग पर ही नहीं बल्कि स्थानीय मार्गों पर भी चलाया जाएगा। 

उत्तराखंड परिवहन निगम के प्रबंध निदेशक वृजेश संत ने बताया कि सीएनजी बसों को अनुबंध पर चलाने के लिए करार अंतिम चरण में है। पहले चरण में आठ से दस बसें संचालित की जाएंगी और सकारात्मक परिणाम के बाद आगे की दिशा तय की जाएगी। फिलहाल, बसों को सीएनजी ईंधन की व्यवस्था संबंधित कंपनी ही कराएगी। 

आइएसबीटी के पास से चल रहीं डग्गामार बसें 

रोडवेज को हर माह लाखों का चूना यूं ही नहीं लग रहा। रोडवेज के आइएसबीटी के पास से ही रोजाना दो दर्जन डग्गामार बसें दिल्ली, जयपुर, कानपुर, लखनऊ और आगरा के लिए संचालित हो रहीं, लेकिन न परिवहन विभाग इन पर कार्रवाई कर रहा, न ही पुलिस। 

उत्तरांचल रोडवेज कर्मचारी यूनियन के महामंत्री अशोक चौधरी ने गुरूवार को परिवहन आयुक्त को इन डग्गामार बसों के नंबरों सहित शिकायत की है। बताया गया कि ऑनलाइन बुकिंग पर खुलेआम इन बसों के टिकट बिक रहे हैं। ये बसें एसी, वाल्वो और स्लीपर श्रेणी की हैं। ज्यादातर बसें रोडवेज बसों के टाइम पर ही बस अड्डे के पास से संचालित हो रही हैं। इनका किराया जानबूझकर कम रखा जाता है, ताकि यात्री निजी संचालकों के जाल में फंस जाएं। इन बसों में सुरक्षा की कोई जिम्मेदारी नहीं होती। यूनियन ने इन बसों के विरुद्ध कार्रवाई की मांग की है।

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