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प्रकृति, अध्यात्म और ज्ञान की त्रिवेणी का आनंद है सिटी फॉरेस्ट 'आनंद वन'

प्रकृति अपने आप में अध्यात्म है ईश्वर का साक्षात स्वरूप है। यदि हम इसे ठीक से समझ लें तो प्रकृति के संरक्षण के प्रति जिम्मेदारी का भाव खुद ही जाग्रत हो जाएगा। कुछ ऐसा ही संदेश देता है देहरादून का सिटी फॉरेस्ट जिसे नाम दिया गया है आनंद वन।

By Sunil NegiEdited By: Published: Tue, 13 Oct 2020 09:30 AM (IST)Updated: Tue, 13 Oct 2020 09:30 AM (IST)
प्रकृति, अध्यात्म और ज्ञान की त्रिवेणी का आनंद है सिटी फॉरेस्ट 'आनंद वन'
देहरादून शहर से 13 किमी के फासले पर सिटी फॉरेस्ट आनंद वन करा रहा सुखद अनुभूति।

देहरादून, रज्य ब्यूरो। प्रकृति अपने आप में अध्यात्म है, ईश्वर का साक्षात स्वरूप है। यदि हम इसे ठीक से समझ लें तो प्रकृति के संरक्षण के प्रति जिम्मेदारी का भाव खुद ही जाग्रत हो जाएगा। कुछ ऐसा ही संदेश देता है देहरादून का सिटी फॉरेस्ट, जिसे नाम दिया गया है आनंद वन। यहां प्रकृति के संरक्षण का संदेश है तो वेद-पुराणों की वाणी भी। इसके साथ ही नई पीढ़ी के लिए फ्लोरा व फौना से जुड़ा ज्ञान का खजाना भी है। प्रकृति, अध्यात्म और ज्ञान की इस त्रिवेणी को वन महकमा 17 अक्टूबर से आमजन के लिए खोलने जा रहा है।

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देहरादून शहर से 13 किमी के फासले पर झाझरा में करीब 50 हेक्टेयर वन क्षेत्र में फैला है आनंद वन। हालांकि, यहां पहले नवग्रह वाटिका व नक्षत्र वाटिकाएं स्थापित की गईं, मगर ये आकार नहीं ले पाईं। बाद में वन महकमे ने इस क्षेत्र को सिटी फॉरेस्ट के रूप में विकसित करने की ठानी, ताकि दूनवासी वहां सुकून महसूस कर सकें। मंथन के दौरान तय हुआ कि सिटी फॉरेस्ट ऐसा होना चाहिए, जिसमें प्रकृति से कोई छेड़छाड़ किए बगैर उसे संवारा जाए। साथ ही यहां आने वाले व्यक्तियों को अध्यात्म का अहसास भी हो।

प्रमुख मुख्य वन संरक्षक जयराज की पत्नी साधना जयराज सिटी फॉरेस्ट की इस संकल्पना को मूर्त रूप देने के लिए बतौर मार्गदर्शक आगे आईं। अक्टूबर 2017 में उन्होंने इसकी कार्ययोजना तैयार की और फिर धीरे-धीरे वन विभाग के सहयोग से इसे आकार दिया। साधना बताती हैं कि तब यह चुनौती थी कि सिटी फॉरेस्ट बनाने के लिए हम कहीं यहां की प्रकृति को न बिगाड़ दें। लिहाजा, ये तय किया गया कि यहां सीमेंट, कंक्रीट का उपयोग नहीं किया जाएगा। कोशिशें रंग लाईं और आज सिटी फॉरेस्ट यानी आनंद वन एकदम अनूठे रूप में बनकर तैयार है।

आनंद वन में प्रकृति, अध्यात्म व ज्ञान तीन बिंदुओं पर फोकस किया गया है। वहां प्रवेश करते ही वेद-पुराणों की वाणी गुंजायमान होती है। इसके लिए पूरे परिसर में 64 स्पीकर लगाए गए हैं। साथ ही जगह जगह वेद-पुराणों, श्रीगुरू ग्रंथ साहिब, कुरान की गूढ़ बातों को समझाया गया है। ऐसे में प्रकृति की छांव में आध्यात्मिक भाव जाग्रत होता है। नक्षत्र वाटिका, हर्बल गार्डन, सीता वाटिका भी बनी हैं, जिनमें इनके बारे में बताया गया है। नक्षत्र वाटिका में एक्यूप्रेशर टायल लगी हैं। साथ ही ग्लोब भी लगाया गया है और नक्षत्रों के महत्व को रेखांकित किया गया है।

बर्डिंग पैराडाइज में उत्तराखंड में पाई जाने वाली परिंदों की प्रजातियों के बारे में बताया गया है तो बांस के जंगल से गुजरते वक्त पक्षियों के सुमधुर कोलाहल के बीच चहलकदमी करना अपने आप में आनंदित करता है। यहां शाकाहारी वन्यजीवों के सजीव दिखने वाले मॉडल हैं तो जंगल रोडस में मांसाहारी जीवों के। यहां बटरफ्लाई गार्डन है तो आनंदी बुग्याल भी आकर्षण के केंद्र हैं। बच्चों के लिए मनोरंजक गतिविधियां भी शामिल की गई हैं। पेड़ों पर तीन हट भी बनाई गई हैं। इनमें एक को केदार कुटीर और दूसरे को बदरी कुटीर नाम दिए गए हैं। इनमें केदारनाथ व बदरीनाथ धामों के बारे में बताया गया है। वसुधारा वाटर फॉल भी यहां तैयार किया गया है।

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शुल्क का हो रहा निर्धारण

आनंद वन की सैर के लिए वन महकमा कुछ शुल्क भी रखने जा रहा है। इसके तहत वयस्क के लिए 50 रुपये प्रति व्यक्ति और बच्चों के लिए 20 रुपये प्रति बच्चा शुल्क रखने पर मंथन चल रहा है। प्रमुख मुख्य वन संरक्षक जयराज के अनुसार इस बारे में जल्द निर्णय लिया जाएगा। 

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