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छठ के रंग में रंगी दिखी द्रोणनगरी, व्रतियों ने डूबते सूरज को दिया अर्घ्य

छठ महापर्व के तीसरे दिन व्रतियों ने डूबते सूरज को अर्घ्य देकर परिवार की सुख और समृद्धि केे लिए भगवान सूर्यदेव और छठी मैया से प्रार्थना की।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Tue, 13 Nov 2018 07:23 PM (IST)Updated: Tue, 13 Nov 2018 08:52 PM (IST)
छठ के रंग में रंगी दिखी द्रोणनगरी, व्रतियों ने डूबते सूरज को दिया अर्घ्य
छठ के रंग में रंगी दिखी द्रोणनगरी, व्रतियों ने डूबते सूरज को दिया अर्घ्य

देहरादून, [जेएनएन]: द्रोणनगरी के साथ ही हरकी पैड़ी और ऋषिकेश के गंगा घाट छठ के रंग में रंगे हुए दिखे। छठ व्रती महिलाओं ने डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया और विधि-विधान से पूजा कर छठी मैया से अपनी मनोकामना पूरी करने का आशीर्वाद मांगा। इस अवसर पर चारों ओर पहिले पहिल छठी मइया..., सुनि लेहु अरज हमार हे छठी मइया...,सेईं ले चरण तोहार ऐ छठी मइया, कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकति...जैसे पारंपरिक गीत गूंजते रहे। हर घाट पर उत्सव और आस्था का माहौल दिखाई दिया। बुधवार को उगते सूरज को अर्घ्य देकर व्रत का पारण होगा। 

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दून में जगह-जगह छठ पूजा का आयोजन किया गया। शहर का मुख्य आयोजन बिहारी महासभा की ओर से टपकेश्वर मंदिर परिसर में किया गया। जहां हजारों की संख्या में छठ पूजन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी। पूजा स्थल को आकर्षक ढंग से सजाया गया था। सुबह से ही घरों और घाट स्थलों पर अर्घ्य की तैयारियां चल रही थीं। मौसमी फल और सब्जियों की खरीददारी को बाजार में बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ उमड़ी। सूर्य भगवान को अघ्र्य देने के लिए बांस के सूप में व्रतियों ने फल व सब्जियों को सजाया और पूरी-प्रसाद को टोकरी में रख छठ पूजा के लिए घाटों पर पहुंचे। 

24 घंटे की व्रती महिलाओं ने शाम के समय तमसा नदी के पवित्र जल में खड़े होकर सूरज को अर्घ्य देकर मन्नत मांगी। मालेदवता, रायपुर, प्रेमनगर, चंद्रबनी, रिस्पना, बलबीर रोड, नंदा की चौकी, ब्रह्मपुरी, दीपनगर, रायपुर आदि जगहों पर सूर्यदेव को अर्घ्य दिया गया। घर के आंगन से लेकर घाट तक आस्था जीवंत हो रही थी। घाट पर व्रतियों ने मिट्टी से बेदी बनाकर दीप जलाए। फिर सभी व्रती पानी में जाकर खड़े हो गए और सूर्यदेव अस्तांचल की ओर बढ़ने लगे। जैसे ही व्रतियों ने उन्हें अर्घ्य दिया, वैसे ही श्रद्धालुओं ने छठ पूजा के पारंपरिग गीतों को गाना शुरू कर दिया। जिसके बाद वे घरों को लौट गर्इं। 

छठ पूजा की मान्यता 

छठ पर्व को लेकर कई पौराणिक और लोक मान्यताएं प्रचलित हैं। इनमें एक यह है कि लंका पर विजय के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन भगवान राम और सीता ने उपवास कर सूर्यदेव की आराधना की थी। सप्तमी को सूर्योदय के समय पुन: अनुष्ठान कर सूर्यदेव का आशीर्वाद लिया था। दूसरी कथा के अनुसार, सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की थी। वह रोजाना घंटों पानी में खड़े होकर उदय और अस्त होते सूर्य भगवान को अर्घ्य देते थे। इसलिए छठ में अर्घ्य दिया जाता है। 

व्रतियों ने की परिवार की सुख और समृद्धि की कामना  

रुड़की में गंगनहर के घाट छठी मैया के गीतों से गूंजते रहे। छठ पर्व के तीसरे दिन लक्ष्मी नारायण मंदिर के पास गंगनहर घाट के दोनों तरफ सूर्य की उपासना के लिए भीड़ उमड़ पड़ी। व्रतियों और उनके परिवार के सदस्यों ने घाट के किनारे बनाई गई वेदी पर उपासना की। जिसके बाद अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही छठी मैया की पूजा-अर्चना की गर्इ। परंपरानुसार व्रतियों ने उपवास रख मुख्य पकवान ठेकुआ बनाया और मौसमी फल, मूली, सिंगाड़ा, गन्ना, नारियल, दूध आदि पूजन सामग्री के साथ गंगनहर घाटों पर पहुंचे। जहां ढलते हुए सूर्य की उपासना कर व्रती महिलाओं ने संतान की रक्षा और परिवार की सुख- शांति के लिए भगवान सूर्यदेव और छठी मैया से प्रार्थना की।

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