उत्तराखंड में 189 सड़कों व पुलों की मंजूरी, 211 गांव सीधे जुड़ सकेंगें सड़क से
केंद्रीय ग्राम्य विकास मंत्रालय ने प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत 189 सड़कों व पुलों के निर्माण को 989 करोड़ रुपए की धनराशि स्वीकृत की है।
देहरादून, [केदार दत्त]: उत्तराखंड के ढाई सौ से अधिक आबादी वाले गांवों को सड़क सुविधा से जोड़ने के लिए केंद्रीय ग्राम्य विकास मंत्रालय ने प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत 189 सड़कों व पुलों के निर्माण को 989 करोड़ रुपए की धनराशि स्वीकृत की है। इस संबंध में आदेश भी जारी कर दिए गए हैं। इससे राज्य के 211 गांव सीधे सड़क से जुड़ सकेंगें। यही नहीं, 765 गांवों के लिए डीपीआर भी उत्तराखंड से मंत्रालय को भेजी जा रही है।
असल में उत्तराखंड में 250 और इससे अधिक आबादी वाले गांवों की संख्या 2536 है। इनमें से 483 को लोक निर्माण विभाग सड़क से जोड़ चुका है, जबकि शेष 2053 को प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) के जरिए यह सुविधा मुहैया कराई जानी है। इस कड़ी में 1087 गांवों के लिए स्वीकृति पूर्व में मिल चुकी है और इनमें से 861 को सड़क से जोड़ा जा चुका है। शेष 226 गांवों के लिए कार्य चल रहा है, लेकिन इनमें से 38 में वन अधिनियम का पेंच फंसा है।
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उत्तराखंड में पीएमजीएसवाई के नोडल अधिकारी एवं अपर सचिव एएस हयांकी के मुताबिक केंद्रीय ग्राम्य विकास मंत्रालय ने राज्य में नई 189 सड़कों व पुलों के लिए 989 करोड़ की धनराशि भी स्वीकृत कर दी है। अब इसी माह से इनके लिए टेंडर प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी। इससे 211 गांव सड़क सुविधा से जुड़ सकेंगे। उन्होंने बताया कि राज्य के 765 अन्य गांवों को भी सड़क से जोडऩे के लिए डीपीआर भी मंत्रालय को भेजी जा रही है। मंत्रालय की ओर से नवंबर तक इसे हर हाल में भेजने और दिसंबर में स्वीकृति जारी करने का भरोसा दिलाया है।
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पीएमजीएसवाई के खुलेंगे 15 नए खंड
नोडल अधिकारी एसएस हयांकी ने बताया कि राज्य के 250 या इससे अधिक आबादी वाले गांवों को 2019 तक सड़क से जोड़ा जाना है। इसे देखते हुए कार्य में तेजी लाने के उद्देश्य से राज्य में पीएमजीएसवाई के 15 नए खंड खोले जाएंगे। केंद्रीय ग्राम्य विकास मंत्रालय के अपर सचिव परमजीत सिन्हा की गुरुवार को मुख्य सचिव शत्रुघ्न सिंह के साथ हुई बैठक में इस पर सहमति बनी। इन खंडों में सिंचाई, पेयजल, सीपीडब्यूडी से कार्मिकों को लिया जाएगा। इसके अलावा वन भूमि हस्तांतरण से संबंधित मामलों में शिथिलता बरतने की मांग पर उन्होंने इस मसले को पर्यावरण एवं वन मंत्रालय में रखने की बात कही।