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केदारनाथ में दर्ज किया गया रिकार्ड 31 डिग्री सेल्सियस तापमान

केदारनाथ धाम में शनिवार को तापमान के सारे रिकार्ड ध्वस्त हो गए। धाम में अधिकतम तापमान 31 और न्यूनतम 23 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sun, 25 Jun 2017 08:36 AM (IST)Updated: Sun, 25 Jun 2017 04:36 PM (IST)
केदारनाथ में दर्ज किया गया रिकार्ड 31 डिग्री सेल्सियस तापमान
केदारनाथ में दर्ज किया गया रिकार्ड 31 डिग्री सेल्सियस तापमान

देहरादून, [जेएनएन]: आप यकीन करें या नहीं, लेकिन नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (निम) का दावा है कि समुद्रतल से साढ़े ग्यारह हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ धाम में शनिवार को तापमान के सारे रिकार्ड ध्वस्त हो गए। धाम में अधिकतम तापमान 31 और न्यूनतम 23 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया है। 

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निम के इस दावे को मौसम और हिमनद विज्ञानी सिरे नकार रहे हैं। उन्होंने कहा कि केदारनाथ से कम ऊंचाई वाले क्षेत्र बदरीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के तापमान में ज्यादा बदलाव नहीं है। ये सभी उच्च हिमालय में एक समान जलवायु में स्थित हैं। ऐसे में केदारनाथ में 31 डिग्री तापमान संभव ही नहीं है।

दरअसल, वर्ष 2013 में आई आपदा के बाद निम ने पुर्निर्माण कार्यों का जिम्मा संभाला। तब से निम ही केदारनाथ का तापमान रिकार्ड करता है। शनिवार को निम के मीडिया प्रभारी देवेंद्र नेगी ने बताया कि अब तक इतना तापमान कभी रिकार्ड नहीं किया गया। 

रुद्रप्रयाग के जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल ने बताया कि केदारनाथ में मौसम विभाग की आब्जर्वेटरी नहीं है, ऐसे में प्रशासन भी निम से तापमान लेता है। हालांकि देहरादून मौसम केंद्र के निदेशक डॉ. विक्रम सिंह इस आंकड़े से सहमत नहीं हैं। डॉ. सिंह का कहना है कि जिस ऊंचाई पर केदारनाथ है, वहां अधिकतम तापमान 18 से 20 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं होता।

दूसरी ओर वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान हिमनद विशेषज्ञ डॉ. डीपी डोभाल डॉ. विक्रम सिंह से सहमत हैं। वह बताते हैं कि वाडिया की एक टीम केदारनाथ में ग्लेश्यिर का अध्ययन कर रही है। टीम के अनुसार शनिवार को चौराबाड़ी ग्लेश्यिर का वाटर डिस्चार्ज (जल प्रवाह) सामान्य था। ऐसे में तापमान भी सामान्य होना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह भी देखा जाना चाहिए कि निम किन उपकरणों की मदद से तापमान माप रहा है।

पर्यावरणविद चंडीप्रसाद भट्ट ने केदारनाथ जैसे ऊंचाई वाले क्षेत्र में 31 डिग्री तापमान का मतलब है कि हिमालयी क्षेत्र में ग्लोबल वार्मिंग का असर हो रहा है, इससे उच्च हिमालयी क्षेत्र में पड़ने वाले दुष्प्रभाव के लिए सचेत करता है।

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