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दो साल में पहाड़ी राज्य उत्तराखंड ने झेले 38 छोटे भूकंप

सीएम त्रिवेंद्र रावत ने कहा कि पिछले दो वर्षों में राज्य में 38 छोटे भूकंप आए, जिससे पता चलता है कि धरती के नीचे तनाव की स्थिति है।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Wed, 22 Nov 2017 06:19 PM (IST)Updated: Wed, 22 Nov 2017 08:56 PM (IST)
दो साल में पहाड़ी राज्य उत्तराखंड ने झेले 38 छोटे भूकंप
दो साल में पहाड़ी राज्य उत्तराखंड ने झेले 38 छोटे भूकंप

देहरादून, [जेएनएन]: विकास और पर्यावरण दोनों में दोस्ती जरूरी है। विकास और पर्यावरण एक दूसरे के पूरक बनें, यह आज के परिदृश्य में जरूरी हो गया है। विकास कार्य ऐसे हों, जो आपदा प्रबंधन के मानकों को पूरा कर सकें। लोग सुरक्षित रहें, सरकार की यही चिंता और चिंतन है। यह बात मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की ओर से आयोजित कार्यशाला में कही। 

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हरिद्वार बाईपास रोड स्थित एक होटल में आपदा सुरक्षित अवस्थापना, संभावनाएं एवं चुनौतियां विषय पर केंद्रित कार्यशाला को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि पिछले दो वर्षों में राज्य में 38 छोटे भूकंप आए हैं। इससे पता चलता है कि धरती के नीचे तनाव की स्थिति है, मगर साथ ही यह भी संभावना है कि ऊर्जा रिलीज हो रही है। इसको लेकर वैज्ञानिक निरंतर अध्ययन भी कर रहे हैं। प्राकृतिक आपदाओं को रोका नहीं जा सकता है, लेकिन इसके लिए तैयारी पूरी होनी चाहिए। निर्माण ऐसे हों जो भूकंप या अन्य आपदा को झेल सकें। उत्तरकाशी के भूकंप में यमुना घाटी में पुरानी शैली पर बने भवन महफूज थे और हमें परंपरागत तकनीक से भी सीख लेने की जरूरत है। 

वहीं, एटॉमिक इनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड के सदस्य प्रो. हर्ष कुमार गुप्ता ने भूकंप के पूर्वानुमान से अधिक इसके प्रति तैयार रहने को जरूरी बताया। उन्होंने कहा कि भूकंप के समय सबसे अधिक नुकसान स्कूलों में देखा गया है, लिहाजा भूकंप से बचाव की तैयारी की शुरुआत स्कूलों से की जानी चाहिए। 

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सदस्य कमल किशोर ने भविष्य में प्रस्तावित विकास कार्यों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि अगले दस सालों में दस हजार किलोमीटर सड़कों का और जाल बिछ जाएगा। मेट्रो रेल लाइनों में भी छह गुना का इजाफा हो जाएगा। अन्य स्तर पर भी विकास कार्य इसी रफ्तार से बढ़ेंगे। विकास कार्यों में यह देखा जाना चाहिए कि वह अगले 50-100 साल के लिहाज से तैयार किए जाएं। वैज्ञानिकों के पास यह अध्ययन है कि किस क्षेत्र में भविष्य में किस तरह की आपदा किस रूप में आ सकती है। विकास की योजनाएं बनाते समय ऐसे अध्ययन के आंकड़ों को भी शामिल किया जाना चाहिए। 

हिमालयी क्षेत्रों में मैदान से भिन्न हों भवन डिजाइन 

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रो फिजिक्स के प्रो. वीके गौड़ ने कार्यशाला में बल दिया कि हिमालयी क्षेत्रों में मैदानी क्षेत्रों के अलग भवन डिजाइन होने चाहिए, ताकि वह आपदा को झेल सकें। हिमालयी राज्य दुनिया की नकल करें यह कतई उचित नहीं। इसके अलावा कार्यशाला में तकनीकी सत्र में देशभर से आए विशेषज्ञों ने अध्ययन रिपोर्ट साझा की।

कराई गई वल्नरेब्लिटी व रिस्क मैपिंग 

उत्तराखंड के आपदा प्रबंधन सचिव अमित नेगी ने जानकारी दी कि आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में विभिन्न स्तर पर काम किया जा रहा है। इस दिशा में विभिन्न क्षेत्रों की वल्नरेब्लिटी व रिस्क मैपिंग करा ली गई है। इससे स्पष्ट हो गया है कि प्रदेश में कौन सा क्षेत्र किस तरह का आपदा के लिहाज से संवेदनशील है। 

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