व्यक्तित्व परीक्षण अनिवार्य, चिकित्सक ही नहीं
राज्य ब्यूरो, देहरादून : राज्य में बीते वर्ष हथियारों के दुरुपयोग को देखते हुए लाइसेंस चाहने वाले व्
राज्य ब्यूरो, देहरादून : राज्य में बीते वर्ष हथियारों के दुरुपयोग को देखते हुए लाइसेंस चाहने वाले व्यक्ति की मानसिक स्थिति के आकलन के लिए व्यक्तित्व परीक्षण को अनिवार्य किया गया लेकिन समस्या यह है कि राज्य के सरकारी अस्पतालों में मानसिक रोग चिकित्सक और मनोवैज्ञानिक ही नहीं हैं। ऐसे में शस्त्र लाइसेंस के लिए आवेदन करने वाले लोगों को इस परीक्षण के लिए चक्कर काटने पड़ रहे हैं।
राजधानी देहरादून स्थित दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल में एक मनोरोग चिकित्सक मौजूद हैं। दून अस्पताल में भी एक ही चिकित्सक होने के कारण लोगों को यह परीक्षण कराने के लिए कई-कई बार चक्कर काटने पड़ते हैं। वहीं, अगर निजी चिकित्सकों से यह परीक्षण कराया जाए तो इसके लिए 1500 से 2500 रुपये तक अतिरिक्त खर्च करना पड़ता है। इसके अलावा राज्य के एक-दो अस्पतालों में ही यह सुविधा मौजूद है। राजधानी और एक दो बड़े शहरों की स्थिति यह है तो आसानी से समझा जा सकता है कि प्रदेश के दूरस्थ क्षेत्रों और पर्वतीय जिलों में क्या स्थिति होगी। वहां, निजी चिकित्सक भी नहीं हैं। ऐसे में तमाम आवेदन व्यक्तित्व परीक्षण रिपोर्ट नहीं होने के कारण जमा नहीं हो पा रहे हैं। अधिवक्ता राजीव गुप्ता की मानें तो राजधानी देहरादून में ही लाइसेंस के लिए आवेदन करने वाले दर्जनों लोग रोज अस्पताल के चक्कर काट रहे हैं। ऐसे में उन्हें निजी चिकित्सकों के पास जाना पड़ रहा है।
उत्तराखंड देश में सबसे तेज आत्महत्या वृद्धि दर वाला राज्य है। ऐसे में हथियारों से आत्मघात का खतरा भी कम नहीं रहता। वहीं, दूसरा पहलू मनोरोग और मनोविज्ञान विशेषज्ञों की कमी का है। दोनों ही मामले एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। चिकित्सकों की कमी के कारण केवल हथियार लाइसेंस नहीं अटके हैं, बल्कि हजारों अवसादग्रस्त लोगों को भी चिकित्सक मुहैया नहीं हो पा रहे हैं। मनोवैज्ञानिक डॉ. मुकुल शर्मा का कहना है कि शस्त्र लाइसेंस के लिए यह टेस्ट जरूरी है। इससे लाइसेंस के लिए आवेदन करने वाले व्यक्ति के मानसिक स्तर, अवसाद की स्थिति और भविष्य में हथियार से होने वाले खतरों को भांपा जा सकता है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में सरकार अस्पतालों में चिकित्सकों की कमी है। इस ओर सरकार को ठोस कदम उठाने चाहिए।