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शिकारियों को सलाखों तक पहुंचाएगा दुर्लभ छिपकलियों का डीएनए

दुर्लभ श्रेणी में शामिल वेरेनस छिपकली (मॉनीटर लिजार्ड) को बचाने के लिए इनका डीएनए रिकार्ड तैयार कर लिया गया है। इस डीएनए की मदद से शिकारी भी पकड़े जाएंगे।

By BhanuEdited By: Published: Thu, 30 Mar 2017 11:36 AM (IST)Updated: Sat, 01 Apr 2017 06:40 AM (IST)
शिकारियों को सलाखों तक पहुंचाएगा दुर्लभ छिपकलियों का डीएनए
शिकारियों को सलाखों तक पहुंचाएगा दुर्लभ छिपकलियों का डीएनए

देहरादून, [सुमन सेमवाल]: दुर्लभ श्रेणी में शामिल वेरेनस छिपकली (मॉनीटर लिजार्ड) को बचाने के लिए इनका डीएनए रिकार्ड तैयार कर लिया गया है। देहरादून स्थित भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (जेडएसआइ) ने वेरेनस छिपकली की चार प्रजातियों के डीएनए (डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड) अध्ययन के बाद इसमें कामयाबी पाई है। 

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अब यदि किसी शिकारी के पास से छिपकली का मांस, खाल या अन्य अंग बरामद किया जाता है तो उसकी डीएनए जांच कर आसानी से पता लगा लिया जाएगा कि पकड़ा गया मांस आदि प्रतिबंधित श्रेणी का छिपकली का है या नहीं।

जेडएसआइ की कार्यालय प्रमुख डॉ. अर्चना बहुगुणा के मुताबिक देश में यह अपनी तरह का पहला अध्ययन है। इसमें वेरेनस की बैंगालेंसेस, साल्वेटर, फ्लेबिसेंस व ग्रीसियस प्रजाति को शामिल किया गया। यही छिपकलियां शिकारियों के निशाने पर भी हैं। इसके लिए इनके 34 खास तरह जीन में से तीन जीन के माध्यम से अध्ययन किया गया। 

इससे डीएनए संरचना की जानकारी मिलने के साथ ही यह भी पता चला कि जैविक गुणधर्म के अनुसार बैंगालेंसेस व साल्वेटर एक दूसरे के करीब हैं और इसी तरह फ्लेबिसेंस व ग्रेसियेंस एक दूसरे के करीब पाई गईं। इन प्रजातियों के डीएनए सीक्वेंस की जानकारी वैश्विक वेबसाइट नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजीइन्फॉर्मेशन (एनसीबीआइ) में भी अपलोड करा दी गई है। ताकि विश्वभर में कहीं पर भी इस प्रजाति के शिकार का मामला सामने आने पर उसकी आसानी से पहचान की जा सके। जेडएसआइ के इस अध्ययन को अमेरिका से प्रकाशित होने वाले प्रसिद्ध जर्नल 'माइट्रोकॉन्ड्रियल डीएनए' में भी स्थान दिया गया है।

यहां पाई जाती हैं ये छिपकलियां

बैंगालेंसेस (उत्तराखंड समेत पूरे भारत में)

साल्वेटर (पश्चिम बंगाल व अंडमान निकोबार)

फ्लेबिसेंस (हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, गुजरात आदि)

ग्रीसियस (राजस्थान, उत्तर प्रदेश पश्चिम आदि)

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