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बगैर प्रमाण ही भेज दिया जवाब!

राज्य ब्यूरो, देहरादून प्रदेश में लोकायुक्त के गठन को लेकर सरकार भले ही राजभवन के पाले में गेंद सर

By Edited By: Published: Tue, 25 Oct 2016 01:00 AM (IST)Updated: Tue, 25 Oct 2016 01:00 AM (IST)
बगैर प्रमाण ही भेज दिया जवाब!

राज्य ब्यूरो, देहरादून

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प्रदेश में लोकायुक्त के गठन को लेकर सरकार भले ही राजभवन के पाले में गेंद सरका रही है, लेकिन इस मामले में उसका रवैया सवालों के घेरे में है। राजभवन को दोबारा भेजे गए जवाब में लोकायुक्त के पैनल में शामिल लोगों को सीबीआइ जांच में क्लीन चिट दिए जाने के समर्थन में मुख्यमंत्री ने टिप्पणी तो की है, लेकिन इस संबंध में प्रमाण नहीं दिया है, जबकि राजभवन की ओर से प्रमाण देने को कहा गया था। यही नहीं, लोकायुक्त का चयन नए सिरे से किए जाने के राजभवन के निर्देशों का भी सरकार ने पालन नहीं किया है। इससे प्रदेश में लोकायुक्त के गठन का मामला और उलझ गया है। उधर, समाजवादी पार्टी की उत्तराखंड इकाई ने भी राज्यपाल से मुलाकात कर स्वच्छ और बेदाग छवि के लोकायुक्त की नियुक्ति की पैरवी की।

प्रदेश में लोकायुक्त के गठन को लेकर सरकार गंभीर रही हो, कम से कम ऐसा पैनल को लेकर उठे विवाद को देखते हुए नजर नहीं आता। सरकार की ओर से राजभवन को भेजी गई फाइल पर राजभवन ने दो बार आपत्तियां लगाई, लेकिन सरकार ने समाधान करने के बजाए आपत्तियों को ही सिरे से खारिज कर दिया। आपत्तियों को खारिज करने के सरकार के तर्क में सबूतों का दम-खम दिखाई नहीं पड़ रहा है। राजभवन को भेजे गए लोकायुक्त के पैनल में शामिल नामों पर विपक्ष भाजपा ने यह कहते हुए आपत्ति जताई थी कि इन नामों में कुछ के खिलाफ सीबीआइ जांच हुई थी। भ्रष्टाचार-कदाचार के खिलाफ जांच को गठित लोकायुक्त संस्था की पारदर्शिता और निष्पक्षता के लिए इसमें स्वच्छ छवि के बेदाग लोगों को ही जिम्मेदार पद पर बैठाना चाहिए।

राजभवन ने लोकायुक्त संस्था पर उठने वाले सवालों के बारे में सरकार से स्पष्टीकरण मांगा था। सरकार को भेजे पत्र में राज्यपाल डॉ कृष्णकांत पाल ने लोकायुक्त के लिए संस्तुत नाम जस्टिस जेसीएस रावत और सर्च कमेटी के पैनल में शामिल जस्टिस भंवर सिंह के खिलाफ सीबीआइ जांच के बारे में सरकार से जवाब मांगा था। खास बात यह है कि राजभवन की इस आपत्ति पर मुख्यमंत्री हरीश रावत ने खुद टिप्पणी लिखी और सीबीआइ जांच में उक्त दोनों को क्लीन चिट मिलने का उल्लेख किया है। हालांकि, इस उल्लेख के साथ मुख्यमंत्री की ओर से कोई प्रमाण संलग्न नहीं किया गया। सूत्रों के मुताबिक बगैर ठोस सबूत या आधार के मुख्यमंत्री की टिप्पणी को राजभवन वजनदार नहीं मान रहा है। राजभवन के सूत्रों की मानें तो इस मामले में विशिष्ट बिंदुओं पर स्पष्टीकरण अपेक्षित था, जिसका संतोषजनक उत्तर प्राप्त न होने से लोकायुक्त के गठन का प्रकरण लंबित चल रहा है।

यही नहीं, राजभवन ने पहले भेजी गई आपत्ति में लोकायुक्त चयन प्रक्रिया पर अंगुली उठाते हुए नए सिरे से लोकायुक्त के गठन के निर्देश सरकार को दिए थे। सरकार ने इन निर्देशों पर अमल करने के बजाए लोकायुक्त के लिए अपनाई गई प्रक्रिया को नियमसंगत करार देते हुए फाइल राजभवन को भेजी गई थी। विधानसभा चुनाव के मौके पर लोकायुक्त के गठन की कवायद में खामियां सामने आने के बावजूद सरकार इन्हें मानने को तैयार नहीं है।


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