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तो बेसबब नहीं आर्य की नाराजगी

राज्य ब्यूरो, देहरादून: राज्यसभा सीट के लिए प्रत्याशी चयन में हुई अपनी उपेक्षा और प्रदीप टम्टा को तर

By Edited By: Published: Mon, 30 May 2016 01:01 AM (IST)Updated: Mon, 30 May 2016 01:01 AM (IST)
तो बेसबब नहीं आर्य की नाराजगी

राज्य ब्यूरो, देहरादून: राज्यसभा सीट के लिए प्रत्याशी चयन में हुई अपनी उपेक्षा और प्रदीप टम्टा को तरजीह दिए जाने से खफा कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य इस बार पार्टी नेतृत्व व मुख्यमंत्री से खुलकर नाराजगी का इजहार करने से नहीं चूके। उत्तराखंड में कांग्रेस के सबसे बड़े दलित नेता आर्य की नाराजगी के पीछे कई ठोस वजह भी हैं। राज्यसभा सीट के लिए आर्य इससे पहले भी टिकट पाने से वंचित रहे हैं, मगर लगता है इस बार उनके नाम पर प्रदीप टम्टा को तरजीह दिए जाने का पार्टी का फैसला उनके अहम को ठेस पहुंचा गया।

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पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के साथ ही मौजूदा मुख्यमंत्री हरीश रावत के कार्यकाल में कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य कई मौकों पर अलग-अलग मामलों में नाराजगी व्यक्त कर चुके हैं, मगर ऐसे हर मौके पर बाद में उन्होंने हालात से समझौता करते हुए पार्टी हित में अपने कदम पीछे खींच लिए। इस बार राज्यसभा के लिए उनकी दावेदारी पर पूर्व सांसद प्रदीप टम्टा को तरजीह देने का फैसले पर आर्य अपनी नाराजगी को दबा नहीं पाए। दरअसल, यशपाल आर्य प्रदेश में कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में शुमार हैं। विधानसभा अध्यक्ष जैसे बेहद अहम पद पर रहने के साथ ही वे दो बार कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं।

वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में उनके ही नेतृत्व में कांग्रेस राज्य की पांचों सीटों पर कब्जा जमाने में सफल हुई थी। 2012 में उत्तराखंड में जब विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया गया, तब यशपाल आर्य भी मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे। प्रदेश में बड़ा दलित चेहरा होना उनकी दावेदारी का एक मुख्य आधार थी, मगर उन्हे मौका नहीं मिल पाया। इसके बाद 2014 में सरकार में नेतृत्व परिवर्तन हुआ, तो तब भी उनके नाम पर चर्चा चली, लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी हरीश रावत को मिली।

दो वर्षो में बदली सियासी परिस्थितियों में पहले सतपाल महाराज और फिर विजय बहुगुणा व हरक सिंह रावत के कांग्रेस को अलविदा कहने पार्टी में आर्य का कद भी स्वत: बढ़ गया। संभवत: आर्य को अंदर ही अंदर यह बात कचोटती रही कि पार्टी में बड़ा कद होने व मुख्यमंत्री पद के भी दावेदार होने के बावजूद राज्यसभा सीट के लिए उनकी दावेदारी को नजरअंदाज करते हुए प्रदीप टम्टा का नाम आगे कर दिया गया। नतीजा यह कि पहले की तरह इस बार आर्य अपनी नाराजगी को ज्यादा देर तक दबा नहीं पाए।


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