पीडीएफ पर टिका राज्यसभा का गणित
राज्य ब्यूरो, देहरादून: प्रदेश में चंद दिनों बाद होने वाले राज्यसभा की सीट के चुनाव का सारा गणित अब
राज्य ब्यूरो, देहरादून: प्रदेश में चंद दिनों बाद होने वाले राज्यसभा की सीट के चुनाव का सारा गणित अब निर्दलीय, उक्रांद व बसपा के एकीकृत मोर्चे (पीडीएफ) के ईर्द-गिर्द सिमटा नजर आ रहा है। कांग्रेस के इस सीट पर प्रत्याशी घोषित करने से पहले पीडीएफ की राय न लेना कांग्रेस को फिलहाल भारी पड़ता नजर आ रहा है। पीडीएफ ने अपनी नजरंदाजी से नाराज होकर दिनेश धनै को अपना प्रत्याशी बनाया है, उससे सरकार में बैचेनी बढ़ गई है। हालांकि, पीडीएफ की एका को लेकर भी संशय चल रहा है। पीडीएफ के सदस्य हरीश चंद्र दुर्गापाल को मुख्यमंत्री का करीबी माना जाता है। बसपा हाल ही में फ्लोर टेस्ट के दौरान पीडीएफ से दूरी बनाते नजर आई थी। ऐसे में पीडीएफ की एकता ही उसकी सफलता की कुंजी साबित होगी।
प्रदेश में राज्यसभा की सीट के अंक गणित में अभी तक कांग्रेस सबसे मजबूत स्थिति में मानी जा रही थी। कारण यह कि पीडीएफ के सरकार में शामिल होने के कारण इनके छह वोट भी कांग्रेस के पाले में जाने तय माने जा रहे थे। पीडीएफ में तीन निर्दलीय, एक उक्रांद और दो बसपा के सदस्य हैं। इस कारण संख्याबल में कम होने के बावजूद कांग्रेस प्रत्याशी का इस सीट पर जीतना तय माना गया। हालांकि, पीडीएफ के दिनेश धनै ने भी इस टिकट पर अपनी दावेदारी ठोकी थी। कांग्रेस ने इस सीट पर पूर्व सांसद प्रदीप टम्टा को अपना प्रत्याशी घोषित किया। इस दौरान कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने पीडीएफ से राय नहीं ली। कांग्रेस का यह निर्णय पीडीएफ को नागवार गुजरा और उन्होंने दिनेश धनै को अपना प्रत्याशी घोषित कर डाला और सरकार गठन में सहयोग का हवाला देते हुए उनसे ही समर्थन की मांग कर डाली। पीडीएफ के इस कदम की उम्मीद किसी को नहीं थी। इससे चुनाव में वोट का गणित गड़बड़ा गया। ऐसे में नजरें अब पीडीएफ की एका पर टिक गई है। माना जा रहा है कि दिनेश धनै के दावेदारी पर अडिग रहने से पीडीएफ के भीतर दरार डाली जा सकता है। हरीश चंद्र दुर्गापाल को सरकार का नजदीकी माना जाता है। बसपा पूर्व में भी गठबंधन धर्म को ताक पर रखते हुए बसपा सुप्रीमो मायावती के निर्देशों का पालन करने की बात कर चुकी है। माना जा रहा है कि यहां भी बसपा सुप्रीमो कांग्रेस को समर्थन दे सकती है। ऐसे में पीडीएफ के पास केवल तीन ही वोट रह जाते हैं। ऐसी स्थिति में भी पीडीएफ के शेष सदस्यों के सामने दो विकल्प बचते हैं। या तो वे भाजपा से समर्थन ले लें या फिर भाजपा को समर्थन दे दें। इन दोनों स्थितियों में हार कांग्रेस की ही होगी। कांग्रेस ऐसा बिल्कुल नहीं चाहेगी। कुल मिलाकर पीडीएफ एक बार फिर राज्यसभा के चुनाव में अभी भी किंगमेकर की भूमिका में ही है।