बरसे तो खूब शाह मगर उत्तराखंड को छुआ नहीं
विकास धूलिया, देहरादून डा. अंबेडकर जयंती पर आयोजित समरसता सम्मेलन में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह कांग्
विकास धूलिया, देहरादून
डा. अंबेडकर जयंती पर आयोजित समरसता सम्मेलन में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह कांग्रेस पर तो खूब बरसे मगर पिछले एक महीने के दौरान के राष्ट्रीय राजनीति तक चर्चित उत्तराखंड एपीसोड को उन्होंने छुआ भी नहीं। उत्तराखंड की कांग्रेस सरकार में बगावत और राष्ट्रपति शासन के बाद कांग्रेस लगातार भाजपा को निशाने पर लिए हुए है, इस नाते समझा जा रहा था कि अमित शाह उत्तराखंड में कांग्रेस के हमलों का जवाब देंगे, मगर उन्होंने इससे पूरी तरह परहेज किया। पार्टी के इस स्टैंड से माना जा रहा है कि भाजपा यह जाहिर करने की रणनीति पर चल रही है कि उत्तराखंड में पैदा राजनैतिक अस्थिरता से उसका कोई लेना-देना नहीं।
गुजरी 18 मार्च को उत्तराखंड विधानसभा के बजट सत्र में विनियोग विधेयक पारित किए जाने के दौरान कांग्रेस के नौ विधायक बगावत पर उतर आए। नतीजतन, केंद्र ने 27 मार्च को उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगा दिया। उत्तराखंड से लेकर दिल्ली तक, कांग्रेस ने इस सियासी घटनाक्रम के लिए पूरी तरह भाजपा को ही जिम्मेदार ठहराया। पार्टी ने आरोप लगाया कि अरुणाचल के बाद उत्तराखंड में केंद्र की भाजपानीत सरकार साजिशन राजनैतिक अस्थिरता पैदा कर रही है। कांग्रेस की ओर से वरिष्ठ केंद्रीय नेताओं ने मोर्चा संभाला तो भाजपा के केंद्रीय नेता भी जवाबी हमलों में पीछे नहीं रहे और इसे कांग्रेस के अंदरूनी कलह का परिणाम करार दिया।
दरअसल, कांग्रेस के बागी विधायकों को जिस तरह बगावत के तत्काल बाद भाजपा का साथ मिला, उससे संकेत भी यही गए कि भाजपा सात-आठ महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव तक भी सत्ता के लिए इंतजार को तैयार नहीं और मौका लगते ही पार्टी कांग्रेस से टूटे विधायकों की मदद से सरकार बनाने को बेताब है। अगर बात केवल कांग्रेस के आरोपों की ही होती तो ठीक, मगर भाजपा के कई वरिष्ठ नेताओं ने भी सरकार बनाने की अपनी उत्कंठा को सार्वजनिक करने से गुरेज नहीं किया। वह तो इन नौ विधायकों की सदस्यता स्पीकर द्वारा खत्म कर दिए जाने और मामला हाइकोर्ट में चले जाने के कारण ऐसा संभव नहीं हो पाया, लेकिन इसके बावजूद भाजपा ने उम्मीद अब भी नहीं छोड़ी है।
उत्तराखंड में चल रही राजनैतिक अस्थिरता और इस वजह से भाजपा-कांग्रेसके बीच गरमाए सियासी माहौल को देखते हुए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की हरिद्वार यात्रा को काफी अहम माना जा रहा था। राजनैतिक हलकों में कयास लगाए जा रहे थे कि शाह उत्तराखंड आकर कांग्रेस को उसके हमलों का जवाब जरूर देंगे लेकिन भाजपा अध्यक्ष ने उत्तराखंड के राजनैतिक घटनाक्रम पर कोई टिप्पणी ही नहीं की। उन्होंने कांग्रेस पर एक के बाद एक हमले जरूर किए, मगर सब डा. अंबेडकर के परिप्रेक्ष्य में। हालांकि माना जा रहा है कि अमित शाह ने सुविचारित रणनीति के तहत समरसता सम्मेलन के मंच का इस्तेमाल उत्तराखंड के विशेष परिप्रेक्ष्य में नहीं किया। इसलिए भी, ताकि कांग्रेस को फिर अपने आरोप दोहराने का मौका न मिले कि उत्तराखंड में उसकी सरकार को अस्थिर करने के पीछे भाजपा का हाथ था।