उद्यानों की जमीनों को बचाने की चुनौती
राज्य ब्यूरो, देहरादून: प्रदेश सरकार एक ओर प्रदेश में औद्यानिकी को बढ़ावा देने की पैरवी कर रही है, व
राज्य ब्यूरो, देहरादून: प्रदेश सरकार एक ओर प्रदेश में औद्यानिकी को बढ़ावा देने की पैरवी कर रही है, वहीं उद्यान महकमे की जमीनों को बचाने के कोई ठोस प्रयास नहीं किया जास रहा है। पिछले कुछ वर्षो में सरकार ने तकरीबन दस प्रकरणों में उद्यान महकमे की भूमि अन्य विभाग को हस्तांतरित कर दी। उद्यान महकमे की मौजूदा स्थिति इस बात से भी समझी जा सकती है कि 104 उद्यानों में से 77 पर रेखीय विभाग कार्य कर रहे हैं।
राज्य गठन के बाद से ही प्रदेश में उद्यान महकमे के हालात बहुत अच्छे नहंी हैं। अभी तक किसी भी सरकार ने इस विभाग को गंभीरता से नहीं लिया। एक बार सरकार ने 14 उद्यानों को पुनर्जीवित करने का जिम्मा निजी हाथों को दिया लेकिन यह कवायद कभी परवान ही नहीं चढ़ी। ऐसे में सरकार ने उद्यान को बढ़ावा देने की बजाय इसकी जमीन गैर कृषि कार्यो के लिए आवंटित कर दी।
मसलन, ऊखीमठ में मंडी की स्थापना के लिए मंडी परिषद को उद्यान महकमे की जमीन दी गई। गैरसैण में जूनियर डिवीजन कोर्ट खोलने के लिए उद्यान महकमे की जमीन ही संबंधित महकमे को हस्तांतरित की गई। पिथौरागढ़ में खेल विभाग को उद्यान से ही जमीन लेकर दी गई। नारायणबगड़ में भरसार विश्वविद्यालय को भी उद्यान की ही जमीन दी गई। अल्मोड़ा में उद्यान की कई एकड़ जमीन उद्योग महकमे को दी गई है। हाल में देहरादून सेलाकुई में उद्यान की जमीन रेशम विभाग को दी गई है।
इतना ही नहीं, तमाम महकमों की नजरें उद्यान विभाग की जमीनों पर ही टिकी हुई हैं। इसके लिए शासन में एक दर्जन से अधिक प्रस्ताव लंबित हैं। सूत्रों की मानें तो सरकार को पर्वतीय क्षेत्रों में इस समय तमाम कार्यो के लिए जमीन नहीं मिल रही है। ऐसे में उद्यान विभाग की जमीनों को नए कार्यो के लिए उपयुक्त पाया गया है। यही एक कारण भी माना जा रहा है कि उद्यानों को पुनर्जीवित करने के प्रस्ताव को आर्थिक कारणों का हवाला देते हुए वापस किया जा चुका है।