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स्कॉच की टक्कर में मंडुवा स्कॉच

विकास धूलिया, देहरादून पढ़ने में कुछ अटपटा जरूर लगेगा लेकिन यह है सच कि अगर राज्य सरकार की योजना प

By Edited By: Published: Tue, 01 Sep 2015 01:00 AM (IST)Updated: Tue, 01 Sep 2015 01:00 AM (IST)
स्कॉच की टक्कर में मंडुवा स्कॉच

विकास धूलिया, देहरादून

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पढ़ने में कुछ अटपटा जरूर लगेगा लेकिन यह है सच कि अगर राज्य सरकार की योजना परवान चढ़ती है तो बहुत जल्द आपको उत्तराखंड की मंडुवा स्कॉच, स्कॉच को टक्कर देती नजर आएगी। जी हां, उत्तराखंड के पारंपरिक मोटे अनाज मंडुवा से स्कॉच बनाने की संभावनाएं तलाश रही सरकार ने बकायदा कदम आगे बढ़ाते हुए लखनऊ स्थित प्रयोगशाला को इसके सैंपल भेज दिए हैं ताकि मंडुवा से बनने वाली स्कॉच में फरमेंटेशन की मात्रा का आकलन किया जा सके। मुख्यमंत्री हरीश रावत का कहना है कि सरकार इस दिशा में गंभीर है और जल्द ही इस संबंध में अंतिम निर्णय ले लिया जाएगा।

'कोदा झंगोरा खाएंगे, उत्तराखंड बनाएंगे', जरा याद कीजिए उत्तराखंड आंदोलन का वह दौर, जब पहाड़ की वादियां ऐसे ही नारों से गूंज उठती थीं। वक्त ने करवट बदली, राज्य अस्तित्व में आया, लेकिन सरकारों ने जनमानस की इस आवाज को तवज्जो नहीं दी। अलबत्ता, राज्य के पारंपरिक मोटे अनाजों को महत्व देने की बात अवश्य हुई, लेकिन धरातल पर कोई ठोस पहल नहीं हो पाई। परिणामस्वरूप मंडुवा (कोदा) धीरे-धीरे नेपथ्य में चला गया। पंद्रह साल के इंतजार के बाद अब सरकार का ध्यान इस तरफ गया है। इस कड़ी में मंडुवा की खेती को महत्व देने के साथ ही इसका उपयोग स्कॉच बनाने में करने की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं।

असल में उत्तराखंड के पारंपरिक मोटे अनाजों में मंडुवा प्रमुख है। कहने को तो राज्य में आज भी मंडुवा की खेती का क्षेत्रफल डेढ़ से दो लाख हेक्टेयर के बीच है, लेकिन उत्पादन के लिहाज से देखें तो हालात बेहद खराब हैं। पर्वतीय इलाकों से लगातार होता पलायन, वन्यजीवों के खेती को भारी क्षति पहुंचाने जैसे कारणों के चलते लोगों का खेती से मोहभंग होता चला गया। इसकी सबसे अधिक मार मंडुवा की खेती पर पड़ी। हालांकि, उत्तराखंड बनने के बाद मंडुवा को बढ़ावा देने और इसे निर्यात करने तक की बात हुई।

जापान से इसका न्योता भी आया, लेकिन उत्तराखंड वहां की मांग ही पूरी नहीं कर पाया। नतीजतन, यह मुहिम भी परवान नहीं चढ़ पाई। बाद के वर्षाें में मंडुवा को स्थानीय स्तर पर प्रोत्साहन देने का सरकार ने फैसला लिया। मंडुवा से बिस्कुट आदि बनाने की दिशा में कदम बढ़ाए गए, साथ ही हाल में सरकार ने सरकारी अस्पतालों में मंडुवा की रोटी को महत्व देने का फैसला भी लिया। फिर भी उत्पादन के मामले में सूबा कहीं पीछे छूट गया है।

अब सरकार का ध्यान फिर से मंडुवा की तरफ गया है। मंशा है कि मंडुवा उत्पादन से जहां लोगों को खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा सकेगा, वहीं इसका व्यावसायिक उपयोग होने पर किसानों की आर्थिकी संवरेगी। इसके लिए तोड़ निकाला गया है कि मंडुवा से स्कॉच बनाई जाएगी। मुख्यमंत्री हरीश रावत के मुताबिक स्थानीय उत्पादों की डिमांड बनाने से इनका उत्पादन भी स्वत: ही बढ़ेगा। इसी सोच को आगे बढ़ाते हुए स्कॉच के विकल्प के रूप में मंडुवा से स्कॉच तैयार करने की योजना है। इसके लिए मंडुवा के सैंपल फरमंटेशन मात्रा जांचने के लिए लखनऊ स्थित प्रयोगशाला भेजे गए हैं।

बेहद पौष्टिक है मंडुवा

उत्तराखंड में बारानाजा कृषि पद्धति में मंडुवा की फसल मुख्य रही है। वजह यह कि यह बेहद पौष्टिक है और यह बात वैज्ञानिक आधार पर सिद्ध भी हो चुकी है। इसके पौष्टिक गुण अन्य किसी भी फसल से कहीं अधिक हैं। इसे देखते हुए सरकार ने इसे प्रोत्साहित करने का फैसला लिया है।


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