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कर्तव्य का बोध कराता है रक्षा बंधन

जागरण संवाददाता, देहरादून: रक्षा बंधन का पर्व रिश्तों को मजबूत करता है। अपनेपन का संदेश देने के साथ

By Edited By: Published: Fri, 28 Aug 2015 10:26 PM (IST)Updated: Fri, 28 Aug 2015 10:26 PM (IST)
कर्तव्य का बोध कराता है रक्षा बंधन

जागरण संवाददाता, देहरादून: रक्षा बंधन का पर्व रिश्तों को मजबूत करता है। अपनेपन का संदेश देने के साथ यह पर्व कर्तव्य का बोध भी कराता है। राखी के धागे को देखकर हर भाई को बहन के प्रति अपने कर्तव्यों का आभास होता है। बहन भाई के माथे पर तिलक लगाती है और कलाई पर रक्षा सूत्र बाध दीर्घ जीवन की कामना करती है। भाई बहन की झोली उपहारों से भरते हुए हर संकट से बचाने का वचन देता है। प्रेम और कर्तव्य का यही भाव भाई-बहन के संबंधों को आजीवन मजबूती देता है।

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शास्त्रों में स्कंध पुराण, पद्मपुराण और भागवत कथा के वामनावतार नामक प्रसंग में रक्षाबंधन का उल्लेख है। भागवत कथा के अनुसार दानवेंद्र राजा बलि का अहंकार चूर करने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और ब्राह्मण के वेश में राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंचे। भगवान ने बलि से भिक्षा में तीन पग भूमि का मांग की और तीन पग में सारा आकाश, पाताल और धरती नाप ली और राजा बलि को रसातल में भेज दिया। बलि की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें वरदान लेने को कहा, जिसमें राजा बलि ने भगवान से हर वक्त सामने रहने का वचन ले लिया। भगवान वचन से बंध गए और चारों पहर राजा बलि के सामने रहने लगे। भगवान विष्णु के वापस देवलोक न आने से मां लक्ष्मी परेशान हो गई। इस संकट से निकलने के लिए नारद मुनि की सुझाई गई तरकीब के अनुसार मां लक्ष्मी ने राजा बलि को राखी बांध भाई बनाया और उपहार में पति को अपने साथ ले आई। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। इसके बाद ही इस तिथि को रक्षा बंधन का पर्व मनाया जाता है।

भद्रा में सूर्पणखा ने बांधी रावण को राखी

शास्त्रों के अनुसार भद्राकाल में सूर्पणखा ने भाई रावण को राखी बांधी थी। इसके बाद राम और रावण के बीच हुए युद्ध में रावण का अनिष्ट हो गया था। आचार्य संतोष खंडूड़ी ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार भद्रा सूर्य देव की पुत्री और शनिदेव की बहन है। भद्रा का स्वभाव बेहद उग्र होता है। स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए भगवान ब्रह्मा ने पंचांग के प्रमुख अंग विष्टी करण में स्थान दिया है। जब भद्रा किसी पर्व काल को स्पर्श करती है तो उस काल को श्रद्धावास माना जाता है।

देर रात तक गुलजार रहे बाजार

राखियों की खरीदारी के लिए दून के बाजार देर रात तक गुलजार रहे। सुबह से ही महिलाओं ने भारी भीड़ उमड़ना शुरू हो गई थी। मुख्य बाजारों पलटन बाजार, झंडा बाजार, धामावाला के अलावा गली-मोहल्लों में राखियों से दुकानें सजी हैं। इसके अलावा मिठाई की दुकानों पर भी काफी चहल-पहल रही।


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