'गुडवर्क' पर पुलिस का पर्दा क्यों
जागरण संवाददाता, देहरादून: 90 घंटे दून पुलिस, एसटीएफ, एसओजी व हरिद्वार पुलिस का पूरा फौज-फाटा सिर्फ
जागरण संवाददाता, देहरादून: 90 घंटे दून पुलिस, एसटीएफ, एसओजी व हरिद्वार पुलिस का पूरा फौज-फाटा सिर्फ यही मकसद लेकर दौड़ते रहे कि कैसे भी हार्दिक सकुशल बरामद हो जाए। ईश्वर की कृपा से हुआ भी ऐसा ही। अपहरणकर्ता व फिरौती की रकम भी बरामद हो गई, लेकिन इस भाग-दौड़ का जो तानाबाना पुलिस की तरफ से बुना गया, वह किसी के गले नहीं उतर रहा। गुरुवार देर शाम वारदात के बाद से सोमवार दोपहर तक हार्दिक को छुड़ाने के लिए चलाए आपरेशन में पुलिस ने भले ही हार्दिक को दोपहर डेढ़ बजे छुड़ा लिया लेकिन इसके बाद गुडवर्क का क्रेडिट लेने के लिए पुलिस आठ घंटे तक 'पैंतरेबाजी' में जुटी रही। कभी हरिद्वार, कभी ऋषिकेश तो कभी देहरादून में प्रेस कांफ्रेंस की चर्चा होती रही। यही नहीं क्रेडिट की इस 'होड़' में यही तय नहीं हो पाया कि प्रेस कांफ्रेंस आइजी संजय गुंज्याल करेंगे या एसएसपी पुष्पक ज्योति। रात लगभग नौ बजे आइजी ने निर्देश दिए कि खुलासा एसएसपी करेंगे, वो भी हरिद्वार और ऋषिकेश दोनों जगह। इसके बाद भी एक घंटे तक इसी तरह मुद्दा इधर से उधर ठेला गया। अलबत्ता देर रात एसएसपी ने ऋषिकेश पहुंचकर आठ घंटे चले 'रहस्य' से पर्दा उठाया।
सनसनीखेज घटना के खुलासे को लेकर आठ घंटे चले 'ड्रामे' ने पुलिस के गुडवर्क को भी 'संदिग्ध' बना डाला। चर्चा रही कि ऐसा सिर्फ मीडिया के सवालों से बचने को किया जा रहा। पुलिस की रणनीति यही रही कि जितनी देरी से वह मीडिया के सामने आएगी, सवालों का दवाब उतना ही कम होगा। इसमें दो-राय नहीं कि मामला बेशक बेहद संवेदनशील था और कोई भी अनहोनी घट सकती थी। बरामदगी से पहले तक तो यह ठीक था, लेकिन उसके बाद पर्देदारी कई सवालों को जन्म दे गई। दोपहर डेढ़ बजे शामली से हार्दिक को बरामद करने के बाद रात दस बजे यह सब ड्रामा चलता रहा। मीडिया ही नहीं, ऋषिकेश कोतवाली और हरिद्वार सीसी टावर में परिजनों, रिश्तेदारों और अन्य लोगों की भीड़ अपहरणकर्ताओं के चंगुल से मुक्त हार्दिक की एक झलक पाने की आस में जुटी रही। पुलिस अधिकारियों ने ऐसा क्यों किया गया इसका जवाब भी किसी के पास नहीं।