अंकों में उलझे छात्रों को ग्रेडिंग से नहीं इत्तेफाक
जागरण संवाददाता, देहरादून: छात्र वर्ग के लिए अच्छे अंक लाना हमेशा से ही चुनौती रहा है। उनपर न सिर्फ
जागरण संवाददाता, देहरादून: छात्र वर्ग के लिए अच्छे अंक लाना हमेशा से ही चुनौती रहा है। उनपर न सिर्फ अभिभावक, बल्कि शिक्षकों का भी दबाव रहता है। एग्जाम टाइम किसी जंग से कम नहीं होता। ऐसे में छात्र हर मुमकिन कोशिश करता है कि उसके अंक औरों से अच्छे आएं। नंबर कम आने पर वह तनाव में आ जाते हैं। तभी ग्रेडिंग सिस्टम शुरू किया गया। लेकिन, यह प्रणाली कुछ छात्रों को रास नहीं आ रही। उन्हें प्रतिस्पर्धा की कमी खल रही है।
नंबरों के फेर में उलझे छात्र ग्रेडिंग को मुफीद नहीं मानते। दून इंटरनेशनल के छात्र सार्थक नेगी का कहना है कि उनके अलावा स्कूल में कई अन्य छात्रों की भी 10 सीजीपीए है। वह यह अंदाजा कैसे लगाएं कि इन सभी में वह किस पायदान पर खड़े हैं। अंकों का कॉन्सेप्ट सबसे आसान है। ग्रेडिंग सिस्टम में यह पता लगाना मुश्किल होता है कि असल में अंक कितने आए हैं। इससे ज्यादा मेहनत करने वाले छात्र और बाकी छात्रों में कुछ फर्क नहीं रह जाता।
उनके सहपाठी अमन जोशी कहते हैं कि प्रतिस्पर्धा होती है, तो आगे बढ़ने का जज्बा पैदा होता है। भविष्य में किसी भी परीक्षा में प्रतियोगिता का यही तकाजा होगा। ग्रेडिंग में यह फैसला करना मुश्किल है कि बेस्ट कौन है। मार्किग सिस्टम से छात्र की काबिलियत साफ पता चल जाती है। इसके अलावा वह किस जगह कमजोर है और कहा ज्यादा मेहनत करने की जरूरत है इसका भी पता आसानी से चल जाता है। ग्रेडिंग सिस्टम से छात्र अपना सही आकलन नहीं कर पाता है जो गलत है। स्कूल की ही छात्र खुशी रावत का मानना है कि ग्रेडिंग सिस्टम से टॉपर छात्रों की अहमियत नहीं रह जाती। क्योंकि ग्रेड्स में बाकी छात्र और उनका ग्रेड बराबर ही होता है। क्या ऐसे में छात्र की काबिलियत को ग्रेड्स के आधार पर परखा जा सकता है। शायद नहीं?