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मंडी परिषद के हाथों में एफएल टू की कमान

राज्य ब्यूरो, देहरादून: प्रदेश में शराब के गोदामों (एफएल टू) की कमान मंडी परिषद के हाथों में होगी। ग

By Edited By: Published: Tue, 28 Apr 2015 01:01 AM (IST)Updated: Tue, 28 Apr 2015 01:01 AM (IST)
मंडी परिषद के हाथों में एफएल टू की कमान

राज्य ब्यूरो, देहरादून: प्रदेश में शराब के गोदामों (एफएल टू) की कमान मंडी परिषद के हाथों में होगी। गढ़वाल मंडल विकास निगम एवं कुमाऊं मंडल विकास निगम उप एफएल टू खोलेंगे। इसके तहत प्रत्येक जिले में भी एक गोदाम खोला जाएगा। ये दोनों निगम शराब का क्रय मंडी परिषद से करेंगे और अपने गोदामों के जरिए लाइसेंसधारकों तक सप्लाई करेंगे। मंडी परिषद को यह अधिकार पांच वर्ष तक के लिए दिए गए हैं। सोमवार को इस बारे में आदेश जारी कर दिए गए।

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मुख्य सचिव एन रविशंकर की ओर से जारी आदेशों में कहा गया है कि प्रत्येक जनपद में एफएल टू पर प्राप्त होने वाले समस्त राजस्व प्राप्तियों का भुगतान पृथक खातों में किया जाएगा। संबंधित निगम तत्काल इसका भुगतान मंडी परिषद को करेंगे। इस व्यवस्था के अतिरिक्त होने वाली आय का 75 फीसद मंडी परिषद व शेष 25 फीसद संबंधित निगम को दिया जाएगा। मंडी परिषद इस आय का प्रयोग कृषि, बागवानी व औद्यानिकी को बढ़ावा देने में करेगी। मंडी परिषद को एक वर्ष के भीतर कुमाऊं व गढ़वाल मंडल में दो विन्टनरी की स्थापना करनी होगी।

मंडी परिषद अपने स्टाक में सभी ब्रांडों को रखना सुनिश्चित करेगी। यदि किसी दुकानदार को उसकी पसंद का ब्रांड तीन दिन के भीतर नहीं मिलता तो वह इसकी शिकायत जिलाधिकारी से कर सकता है। यहां भी सुनवाई न होने पर आबकारी आयुक्त के यहां मामला रखा जा सकेगा। अनियमितत्ताओं की शिकायत पर विभाग को स्वयं कार्रवाई करने की स्वतंत्रता प्रदान की गई है। अपर सचिव व आयुक्त आबकारी विनय शंकर पांडे ने कहा कि ये आदेश एक मई से लागू होंगे।

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आदेश में हैं कुछ पेंच

देहरादून: विभाग की ओर से जारी आदेश में अभी से अंगुलियां उठने लगी हैं। मसलन, आदेश में मंडी परिषद को कार्य के संचालन के लिए व्यवहारिक व्यवस्था करने को कहा गया है। इसे निजी व्यवसायियों को बैक डोर एंट्री देने के रूप में देखा जा रहा है। इसके अलावा अभी तक शराब की दुकानों तक शराब पहुंचाने का कोई शुल्क नहीं लिया जाता था। माना जा रहा है कि अब यह ढुलाई दुकानदारों से वसूली जाएगी। इसके अलावा गोदामों को पहले एक साल के लिए दिया जाता था, इस बार यह व्यवस्था पांच साल के लिए की गई है। मामला हाईकोर्ट में होने के बावजूद आदेश जारी करने पर भी जानकार सवाल उठा रहे हैं।


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