दृष्टिबाधितों के दिल में उतरी पार्वती की प्रस्तुति
जागरण संवाददाता, देहरादून: एनआइवीएच में बंगाल की प्रसिद्ध बाउल गायिका पार्वती बाउल की प्रस्तुति दृष्
जागरण संवाददाता, देहरादून: एनआइवीएच में बंगाल की प्रसिद्ध बाउल गायिका पार्वती बाउल की प्रस्तुति दृष्टिबाधित बच्चों के दिल को छू गई। पार्वती की भावभंगिमाओं को उन्होंने हृदय की आंखों से साक्षात देखा। उनकी हर प्रस्तुति पर पूरा माहौल तालियों से गूंजता रहा।
'स्पिक मैके' की ओर से राजपुर स्थित राष्ट्रीय दृष्टिबाधितार्थ संस्थान (एनआइवीएच) में सोमवार को कार्यक्रम आयोजित किया गया। पार्वती ने प्रभु से प्रेम और उनकी इबादत को अपनी प्रस्तुति के जरिये मंच पर जीवंत कर दिया। उन्होंने डुग्गी और इकतारा थामकर खुदा की इबादत में दीवानगी को कबीर गायन 'मत कर माया को अहंकार..' से बयां किया। साथ ही नृत्य भी किया। उन्होंने दृष्टिबाधित बच्चों को इकतारा, तबला और बाउल के बारे में जानकारिया भी दी। साथ ही बाउल गायन के इतिहास से भी रूबरू कराया।
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प्रेम, भक्ति और प्राणायाम बाउल गायन
पार्वती बाउल ने कहा कि बाउल गायन और नृत्य प्रेम, भक्ति और प्राणायाम का प्रतीक है। इसमें हम ध्यान और चिंतन-मनन करते हैं। भक्ति में इतने रम जाते हैं कि खुद-ब-खुद गाने और झूमने लगते हैं। यह साधना की तरह है और इसे मनोरंजन का साधन नहीं कहा जा सकता। पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा कि इस विधा में साधक ईश्वर के समीप होता है। बाउल शब्द के बारे में उन्होंने कहा कि इसका कोई शाब्दिक अर्थ नहीं होता। जैसे अंधा व्यक्ति हाथी को छूकर उसकी अलग-अलग परिभाषाएं देता है, वैसे ही इसके भी कई अर्थ निकाले जा सकते हैं। यह कह सकते हैं कि जहां रात और दिन नहीं होते, वहां प्रकाश होता है। यही बाउल की परिभाषा है।
पार्वती ने बताया कि 16 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने बाउल गीत की शिक्षा शुरू कर दी थी। अपने गुरु सनातन दास से इस परंपरा की सीख ली। इसके बाद गुरु शशाक गोसाई से शिक्षा ग्रहण की। कहा कि 20 सालों से बाउल परपंरा को सीख रही हैं, लेकिन लगता है अभी शुरू ही किया है।