शहर में होंगे मोबाइल शौचालय
जागरण संवाददाता, देहरादून: शहर में सार्वजनिक सुलभ शौचालयों के लिए जिम्मेदार नगर निगम की नींद आखिर टू
जागरण संवाददाता, देहरादून: शहर में सार्वजनिक सुलभ शौचालयों के लिए जिम्मेदार नगर निगम की नींद आखिर टूट ही गई। वह अब शहर में मोबाइल शौचालय ला रहा है। पहले चरण में पुरुष व महिलाओं के लिए 10 मोबाइल शौचालय खरीदे जा रहे हैं, जो शहर के प्रमुख बाजार व मुख्य सड़कों पर मौजूद रहेंगे। बीओटी मोड में इनका संचालन होगा। इसके साथ ही मेयर विनोद चमोली ने एमएनए से शहर में स्थायी शौचालयों के लिए भी जगह चिह्नित करने के आदेश दिए हैं।
कहने को तो दून सूबे का एकमात्र स्मार्ट सिटी बनने जा रहा है, मगर वास्तव में यहां की स्थिति इसके लायक नहीं। अगर शहर में जनता के लिए मौजूद मूलभूत सुविधाएं देखें तो एक भी सार्वजनिक शौचालय ऐसा नहीं, जिसे उपयोग में लाया जा सके। गंदगी और बदबू का हाल यह है कि इनका उपयोग करना तो दूर, आमजन इनके पास से गुजरने में भी घबराता है। 'नरक' बने शहर के सार्वजनिक शौचालयों का ध्यान न तो नगर निगम को है, न जिला प्रशासन और एमडीडीए को ही।
खैर! अब नगर निगम को शहरवासियों की याद आई है और वह शहर में प्रमुख बाजार व मुख्य सड़कों के लिए 10 मोबाइल सुलभ शौचालय खरीद रहा है। चूंकि, इनमें पहिए लगे होंगे, ऐसे में इन्हें सहूलियत के हिसाब से इधर-उधर किया जा सकेगा। इसमें पुरुष व महिलाओं के लिए अलग-अलग केबिन बने होंगे। बीओटी मोड में संचालन के कारण इनकी सफाई भी दुरुस्त रहेगी। भविष्य में निगम ऐसे और शौचालय ले सकता है, ताकि बड़े आयोजन में इन्हें किराए पर दिया जा सके।
वर्तमान हालात
कहने को शहर में पांच सार्वजनिक सुलभ शौचालय और चार दर्जन मूत्रालय हैं, लेकिन इनमें प्रयोग करने लायक एक भी नहीं। सुलभ शौचालय की स्वच्छता और रखरखाव की जिम्मेदारी एमडीडीए के पास है और नगर निगम के पास मूत्रालयों की। सुलभ शौचालयों में शुल्क लगता है तो कभी-कभार यहां सफाई दिख भी जाती है। लेकिन, सार्वजनिक मूत्रालयों के पास से तो गुजरना भी मुश्किल है। शहर में नीति-नियंताओं की मौजूदगी के बावजूद।
पर्यटक-ग्राहकों को होती है परेशानी
शहर की सड़कों-बाजारों में सार्वजनिक शौचालय न होने से पर्यटकों व खरीदारी करने आए लोगों को काफी परेशानी होती है। आप दिल्ली रोड की तरफ से शहर में आएं या हरिद्वार रोड, चकराता रोड की तरफ से। पूरे रास्ते में कहीं भी न तो सार्वजनिक सुलभ शौचालय मिलेगा, न पेयजल टंकी ही। इससे सबसे ज्यादा परेशानी महिलाओं को झेलनी पड़ती है।