खास दर्जे पर केंद्र से बढ़ सकती है तकरार
-नीति नियोजन समूह में ग्रीन बोनस और वनों पर राज्य को हक दिए जाने के उठे मुद्दे -केंद्रीय नीति आयो
-नीति नियोजन समूह में ग्रीन बोनस और वनों पर राज्य को हक दिए जाने के उठे मुद्दे
-केंद्रीय नीति आयोग की पहली बैठक से पहले राज्य की कांग्रेस सरकार ने तय किया अपना एजेंडा
-नीति नियोजन के लिए महत्वपूर्ण सुझावों पर अमल को लेकर राज्य सरकार पर भी बढ़ेगा दबाव
-पीपीजी की बैठक में राजनीतिक दबाव में ठोस कदम नहीं उठाने के मुद्दे पर हुई चर्चा
रविंद्र बड़थ्वाल, देहरादून
केंद्र में योजना आयोग भंग होने के बाद हाल ही में अस्तित्व में आए नीति आयोग के साथ उत्तराखंड की तकरार बढ़ सकती है। खासतौर पर राज्य को मिले विशेष दर्जे पर केंद्र सरकार की ओर से कैंची चलने की स्थिति में विरोध मुखर होने के संकेत शुक्रवार को राज्य के नीति नियोजन समूह (पीपीजी) की पहली बैठक में दिखाई पड़े। राज्य ने इस समूह के जरिए अपनी जरूरतों को लेकर केंद्र पर दबाव बनाने की रणनीति की ओर कदम बढ़ा दिए हैं। बैठक में कई वक्ताओं ने ग्रीन बोनस और वनों पर केंद्र के समान ही राज्य के हक-हकूक की पुरजोर पैरवी की। उधर, इस समूह को गठित कर सरकार ने अपने ऊपर भी बेहतर प्रदर्शन का दबाव बढ़ा दिया है।
केंद्रीय नीति आयोग की पहली बैठक आगामी फरवरी माह के पहले हफ्ते में प्रस्तावित है। इस बैठक से पहले ही राज्य की कांग्रेस सरकार ने नीति नियोजन समूह की पहली बैठक के साथ ही अपना एजेंडा तय कर दिया है। नीति आयोग के सदस्य की हैसियत से मुख्यमंत्री हरीश रावत जाहिर तौर पर इस एजेंडे को सामने रख सकते हैं। राज्य सरकार को अंदेशा है कि नीति आयोग के जरिए उत्तराखंड को केंद्र से मिले खास दर्जे को खटाई में डाला जा सकता है। पीपीजी की बैठक के बाद पत्रकारों से बातचीत में मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इसके संकेत दिए। साथ ही यह भी कहा कि खास दर्जे पर केंद्र ने कदम पीछे खींचे तो अन्य हिमालयी राज्यों को साथ लेकर दबाव बनाया जा सकता है। इस बाबत उत्तराखंड अन्य राज्यों से वार्ता कर सकता है।
योजना आयोग भंग किए जाने से खफा कांग्रेस की राज्य सरकार पीपीजी के जरिए एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश में जुट गई है। पीपीजी में वक्ताओं ने नीति नियोजन के विकेंद्रीकरण पर जोर दिया। उन्होंने नीति नियोजन राज्य के साथ ही जिसतरह जिलों के स्तर पर किए जाने का मुद्दा उठाया, उसके सियासी निहितार्थ तलाश किए जाने लगे हैं। हालांकि, मुख्यमंत्री ने राज्य सरकार और केंद्र में विरोधाभास को बड़ी चतुराई से नकार भी दिया। पीपीजी को लेकर राज्य सरकार के इस कदम के बाद खुद सरकार पर भी महत्वपूर्ण सुझावों को नीति नियोजन से जोड़ने का दबाव भी बढ़ गया है। पीपीजी की बैठक में यह मुद्दा भी उठा कि राजनीतिक समेत विभिन्न स्तरों पर बनने वाले दबावों के चलते महत्वपूर्ण नीति पर अमल करने से सरकार अक्सर कन्नी काट रही है। पीपीजी की मुहिम सरकार के मजबूत इच्छाशक्ति रखने पर ही परवान चढ़ सकती है। इस कसौटी पर सरकार को भी राज्य के भीतर अग्नि परीक्षा देनी होगी।