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घोटाले में अब परामर्श का 'खेल'

राज्य ब्यूरो, देहरादून: तेल के फर्जी बिलों के जरिए स्वास्थ्य विभाग को करोड़ों रुपये की चपत लगा दी गई,

By Edited By: Published: Thu, 29 Jan 2015 01:09 AM (IST)Updated: Thu, 29 Jan 2015 01:09 AM (IST)
घोटाले में अब परामर्श का 'खेल'

राज्य ब्यूरो, देहरादून: तेल के फर्जी बिलों के जरिए स्वास्थ्य विभाग को करोड़ों रुपये की चपत लगा दी गई, मगर विभाग है कि दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा। जी हां, स्वास्थ्य विभाग में करोड़ों रुपये के फर्जी तेल बिल घोटाले में आरोपियों पर मुकदमा दर्ज करने की बजाय परामर्श का 'खेल' चल रहा है। शासन पूर्व में ही न्याय विभाग से परामर्श लेने के बाद स्वास्थ्य महानिदेशक को इस मामले में मुकदमा दर्ज करने के निर्देश दे चुका है, मगर अब महानिदेशालय ने एक बार फिर परामर्श लेने के लिए यह पत्रावली शासन की ओर सरका दी है।

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सरकारी धन की खुली लूट पर शासन व विभागीय अफसरों की संवेदनहीनता का इससे बड़ा नमूना शायद ही कोई हो। तेल के फर्जी बिल प्रस्तुत कर करोड़ों रुपये के भुगतान से जुड़ा यह घोटाला वर्ष 2009 से 2012 के बीच का है। इस प्रकरण के लिए निदेशक डा. ललित मोहन गुसाई के नेतृत्व में जांच कमेटी गठित की गई थी। जांच में इस बात का खुलासा भी हो चुका है कि ऊधमसिंहनगर, देहरादून, टिहरी व हरिद्वार के सीएमओ दफ्तर और कुछ बड़े अस्पतालों से मुख्यमंत्री कार्यालय के फर्जी आदेशों के आधार पर बिलों का भुगतान किया गया।

एक ट्रेवल एजेंसी समेत ग्यारह नए व पुराने सीएमएस और सीएमओ भी मामले में आरोपी पाए गए। दिलचस्प पहलू यह है कि जांच में उक्त तथ्य सामने आने के बाद भी अब तक आरोपियों के विरुद्ध कार्रवाई नहीं हो पाई है। स्वास्थ्य महानिदेशक ने जांच रिपोर्ट शासन को देते हुए उच्च स्तर से जांच की संस्तुति की थी, मगर स्वास्थ्य मंत्री सुरेंद्र सिंह नेगी ने उक्त ट्रेवल एजेंसी के विरुद्ध मुकदमा दर्ज करने के निर्देश दे दिए। हालांकि, बाद में शासन से मामले में न्याय विभाग से परामर्श लिया और फिर स्वास्थ्य महानिदेशक को आरोपियों के विरुद्ध एफआइआर दर्ज करने के निर्देश दे दिए।

हैरत की बात है कि इसके बाद स्वास्थ्य महानिदेशालय स्तर पर भी इस मामले में विधिक सलाह लेने में खासा समय खपाया गया। सूत्रों के मुताबिक महानिदेशालय ने अब यह फाइल फिर से शासन की ओर सरका दी है। महानिदेशालय ने तर्क दिया है कि इस प्रकरण में कई सीएमओ आरोपी हैं। लिहाजा, मुकदमे आरोपी सीएमओ के संबंधित जिलों में किए जाने चाहिए। इस मामले में महानिदेशालय से शासन से फिर परामर्श मांगा है। यानी, स्वास्थ्य विभाग को जिन आरोपियों की वजह से करोड़ों रुपये की चपत लगी, विभाग अब उन पर शिकंजा कसने की बजाय सिर्फ लकीर ही पीट रहा है।


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