लोक के आलोक में बही सुरों की त्रिवेणी
जागरण संवाददाता, देहरादून: लोक के आलोक में सुरों की सरिता बही और तन-मन झूम उठे। लगा, जैसे पूरा उत्तर
जागरण संवाददाता, देहरादून: लोक के आलोक में सुरों की सरिता बही और तन-मन झूम उठे। लगा, जैसे पूरा उत्तराखंडी लोक यहां समा गया हो। लोक के संवाहकों का सम्मान करने आए मुख्यमंत्री हरीश रावत तक खुद अपनी जगह से टस से मस नहीं हुए। भावनाओं के उद्वेग पर नियंत्रण पाना कठिन हो गया। हर कोई लोक की त्रिवेणी में डुबकी लगाना चाहता है, इसलिए समय की कोई परवाह नहीं। सच भी है, ऐसा मौका बार-बार थोड़े आता है। जब तीन पीढ़ी के गायक एक ही मंच पर जुदा-जुदा अंदाज में लोक को आलोकित कर रहे हों।
मौका है 'दैनिक जागरण' के 'उत्तराखंड स्वरोत्सव' का। ओएनजीसी का एएमएन घोष ऑडिटोरियम कार्यक्रम शुरू होने से पहले ही खचाखच भर चुका है। खड़े होने तक के लिए कहीं जगह नहीं बची है। वातावरण में लोक की धुनें गूंज रही हैं। बस इंतजार है मुख्यमंत्री हरीश रावत के आगमन का। लो, इंतजार खत्म हुआ और थिरकने लगी शाम। लोक कलाकारों का सम्मान होने के बाद सुरों की गंगा प्रवाहित होने को है। धड़कनें तेज होने लगी हैं। और..जागर गायिका मंगल गायन के लिए मंच पर नमुदार हुई। 'सुफल ह्वे जयां नंदा तुमारी जातरा' के साथ उन्होंने उत्तराखंड की सुख-समृद्धि की कामना की। फिर जौनसारी लोकगायक सुरेंद्र राणा ने ऐसा समां बांधा कि लोक को 'तांदी' के उल्लास में झूम उठा।
संगीत लहरियों पर थिरकते कदमों को लोकगायक संतोष खेतवाल ने गति प्रदान की। उनके कंठ से बोल फूटे 'तेरो बकी बात रूप कमयूं चा, त्वेमा सैरो गढ़वाल समयूं चा' और लोकजीवन की मनोहारी झांकी सजीव हो उठी। अब बारी है प्रसिद्ध लोक गायक चंद्र सिंह राही की। उन्होंने शुरुआत अपने लोकप्रिय गीत 'न गढ़वाली, न कुमौनी, हम उत्तराखंडी छां' से की और उत्तराखंड आंदोलन की यादें ताजा हो उठीं। उन्होंने जब अपना सुप्रसिद्ध गीत 'हिलमा चांदी को बटना, रैंद दिल मा तुमरी रटना' गाया तो लगा जैसे लोक को इसी का इंतजार था। हालांकि, इसके बावजूद लोक को अधूरेपन महसूस हो रहा है। होना लाजिमी भी है। सुप्रसिद्ध लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी जो अभी खामोश बैठे हैं। पर, भला कितनी देर। नेगी दा के मंच पर आते ही लोक ने तालियों की गड़गड़ाहट के साथ उनका अभिनंदन किया। नेगी लोक को सीधे नंदा के मायके ले गए और गाया, 'पैर-पैर नंदा तू रेशमी कंच्यूला, पैर-पैर नंदा तू हाथ की धगूली।' इतने में ही कहां संतुष्टि होने वाली ठहरी, सो मुख्यमंत्री भी एक और गीत की फरमाइश कर बैठे। तब नेगी ने गाया 'हे भुल्यों हे घस्यन्यों, हे दिद्यों हे पंदन्यों, हे काका तिन द्यखिना, ये चुछौं कख फुक्येना, मेरा ढिबरा हर्ची गैना, मेरा बखरा हर्ची गैना।' फिर तो रंगत देखने वाली थी।
अब भी बहुत कुछ बाकी है और मंच पर हैं सुर कोकिला मीना राणा। उन्होंने शुरुआत अपने प्रसिद्ध गीत 'जख द्यवतौं का थान, मां-बैण्यों कू सम्मान..हम उत्तराखंडी छां' से की। फिर उनके सुरीले कंठ से बोल फूटे, 'दुनिया से न्यारू तू साहिबा, प्राणों से प्यारू तू साहिबा' और लोक तरंगित हो झूम उठा। अब चलते हैं कुमाऊं की वादियों में प्रसिद्ध लोकगायक हीरा सिंह राणा के साथ। हिरदा का अंदाज ही निराला है। 'रंगिली बिंदी घघरी काई, धोती लाल किनर वाई, आई हाय रे मिजाता' की सुरलहरियों पर रंगीलो कुमाऊं साकार हो उठा। यहीं बस नहीं हुई। मुख्यमंत्री ने उनसे अपना मनपसंद गीत गाने की फरमाइश की। और, उन्होंने भी खुशी-खुशी गाया, 'लस्का कमर बांधा, हिम्मत का साथा, फिर भोला उज्यायी होली, कानै रैली राता।' उत्तराखंड आंदोलन के इस गीत ने माहौल में समां बांध दिया।
स्वरोत्सव की अंतिम प्रस्तुति रही लोकगायिका संगीता ढौंडियाल मधवाल के नाम। उनके गीत 'मि घास कटुलो, तू पूला बंधीलू, सच्ये मैं करलू याद रंगीला भिना रे' की प्रस्तुति ने इस शाम में ऐसा रंग भरा कि यह कभी न भूलने वाली शाम बन गई। पर यह क्या, मुख्यमंत्री नेगी दा से फिर फरमाइश कर बैठे। नेगी दा ने भी निराश नहीं किया और गा उठे, 'ठंडो रे ठंडो मेरा पाड़ै की हवा ठंडी, पाणी ठंडो।' और इस तरह स्वरोत्सव लोक के उत्सव में तब्दील हो गया। कार्यक्रम का सफल संचालन अजय जोशी ने किया। यह लोक का अविरल प्रवाह ही था कि मुख्यमंत्री ने भी पूरे मनोयोग कार्यक्रम कर लुत्फ लिया।