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डेरे से स्कूल तक पहुंची मुहिम

अनिल उपाध्याय, देहरादून: 'खारो खास तो उठे, रास्ता तो चले, मैं अगर थक भी गया कारवा तो चले।' कुछ ऐसी ह

By Edited By: Published: Sun, 21 Dec 2014 08:26 PM (IST)Updated: Sun, 21 Dec 2014 08:26 PM (IST)
डेरे से स्कूल तक पहुंची मुहिम

अनिल उपाध्याय, देहरादून: 'खारो खास तो उठे, रास्ता तो चले, मैं अगर थक भी गया कारवा तो चले।' कुछ ऐसी ही मिसाल कायम की है राजकीय इंटर कॉलेज दूधली के शिक्षक जेपी डोभाल ने। सरकारी शिक्षकों की छवि से इतर डोभाल ने कॉलेज के समय के बाद और पहले व अवकाश दिन उन्होंने इन छात्रों को अक्षर ज्ञान दे ऐसी राह दिखाई कि वे आज स्कूल और कॉलेज तक पहुंच गए। इतना ही नहीं वन गुर्जर क्षेत्र में एक शासकीय स्कूल शुरू कराने में भी अहम भूमिका निभाई। इस स्कूल में अब आसपास के छात्रों के साथ ही दर्जनों वन गुर्जर बच्चे भी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।

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वजीर, इमरान, वसीम, अनीशा, कासिम समाज की मुख्यधारा से कटे और आर्थिक तंगी समेत तमाम कारणों के चलते स्कूल का मुंह न देख पाने वाले वन गुर्जर समुदाय के वे बच्चे थे, जिन्होंने कभी स्कूल जाने का न तो सपना देखा और न ही इसकी जरूरत उनके परिजनों ने समझी। लेकिन, इस रास्ते से अपने स्कूल जाने वाले शिक्षक जेपी डोभाल ने महसूस किया कि इन बच्चों को भी शिक्षित करने की जरूरत है ताकि वे समाज की मुख्यधारा से जुड़ सके। छह वर्ष पूर्व उन्होंने इस इरादे को मुकाम तक पहुंचाया और वन गुर्जरों से इस बारे में बात की। काफी मशक्कत के बाद दो-तीन बच्चों और उनके परिजनों ने इसके लिए हामी भरी। कुछ दिन की मशक्कत के बाद जेपी डोभाल इन बच्चों के लिए द्रोणाचार्य बन गए और इन बच्चों के डेरे अब शिक्षा का मंदिर बन गए हैं। छह साल पहले दो बच्चों से शुरू हुआ यह सफर कारवा बन चुका है और बगैर किसी सरकारी इमदाद के यह कर्मयोगी नि:स्वार्थ भाव से अपनी मुहिम में जुटा हुआ है।

जेपी डोभाल सरकारी शिक्षा व्यवस्था के स्याह जंगल में रोशनी का एक ऐसा दीया हैं, जो अपनी जिम्मेदारियों के साथ-साथ समाज के प्रति अपने कतव्र्यो का पालन भी करते हैं। खासकर, उन बच्चों के लिए वे सिर्फ गुरु नहीं है, जो सबको शिक्षा का अधिकार लागू होने के बावजूद स्कूल का मुंह नहीं देख पाते। ऐसा नहीं कि इन निर्धन बच्चों को स्कूल लाने के प्रयास नहीं हुए, पर दिन में काम कर घर चलाने की मजबूरी, आर्थिक तंगी इनके शिक्षित होने की राह में रोड़ा बन रही थी। वे छुट्टी के दिनों में इन बच्चों के घर जाकर पढ़ाते हैं। उन्होंने अपने प्रयासों ने इन बच्चों के लिए गर्म कपड़े, पुस्तकें, स्टेशनरी भी जुटाई है।

प्रयास लाए रंग, प्रेरणा भी बने

इन्हीं प्रयासों का परिणाम है कि वन गुर्जरो के डेरों से सटे बड़कली गांव में तीन साल पहले सरकारी प्राथमिक स्कूल शुरू हो गया है। साथ ही वे अन्य लोगों के लिए प्रेरणा भी बन रहे हैं। स्थानीय महिला पुष्पा भी उनकी इस मुहिम से जुड़ गई हैं। साथ ही दिल्ली की एक संस्था ने इन बच्चों को किताबें, गर्म कपड़े, स्टेशनरी मुहैया कराने के लिए आर्थिक सहयोग को हाथ बढ़ाए।

बच्चे पहुंचे इंटर कॉलेज

जेपी डोभाल से प्रेरित होकर राजकीय इंटर कॉलेज दूधली के अन्य शिक्षकों ने भी वन गुर्जर क्षेत्रों में काम शुरू किया। इसी का नतीजा है कि छह साल पहले शुरू किया गया प्रयास सफल रहा और इनमें छह बच्चे अब राजकीय इंटर कॉलेज में कक्षा छह में पढ़ रहे हैं। डेरे से कक्षा छह में पहुंचे बजीर का कहना है कि स्कूल आकर अच्छा लगता है। पहले पूरा दिन जंगल में खेलते थे और नहीं पता था कि बड़े होकर क्या करना है। अब वह बड़ा होकर शिक्षक बनना चाहता है ताकि और बच्चों को शिक्षा दे सके।


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