कैंट की सियासी जमीं पर नमो-नमो
जागरण संवाददाता, देहरादून: छावनी परिषद की चुनावी वैतरणी में इस बार मोदी भी खेवनहार हैं। भाजपा प्रत्य
जागरण संवाददाता, देहरादून: छावनी परिषद की चुनावी वैतरणी में इस बार मोदी भी खेवनहार हैं। भाजपा प्रत्याशी स्थानीय मुद्दों को भुनाने का साथ-साथ नमो नाम का भी जाप कर रहे हैं। उन्हें यकीन है कि सियासी घमासान में यह फैक्टर निर्णायक होगा। उन्हें उम्मीद है कि युवा ब्रिगेड के बीच मोदी का क्रेज वोट में तब्दील होगा और मोदी लहर पर सवार होकर वह बोर्ड में बहुमत पाने में सफल होंगे।
कैंट बोडरें में 11 जनवरी को चुनाव होना है। जैसे-जैसे मतदान का दिन नजदीक आ रहा है, सर्द फिजा में सियासी तपिश घुलने लगी है। वोट की जुगत में उम्मीदवार अब ज्यादा ऊर्जावान दिख रहे हैं। उल्लेखनीय है की कैंट बोर्ड के चुनावी घमासान में भाजपा ही एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसने अपने पत्ते खोले हैं। पार्टी के घोषित उम्मीदवार मैदान में है। ऐसे में प्रत्याशी की व्यक्तिगत छवि के साथ ही पार्टी का नाम भी उनके साथ है। यानी कैडर वोट पक्का। यूं तो स्थानीय चुनाव स्थानीय मुद्दों पर लडा जाता है और प्रत्याशियों का फोकस भी इसी पर है। लेकिन, इस सियासी गणित में भाजपा को मोदी के रूप में ब्रह्मास्त्र भी मिला है। भाजपा कार्यकर्ताओं का मत है कि इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का व्यक्तित्व और विकास से जुड़ी उनकी सोच चुनाव पर गहरा प्रभाव डालेगी। मोदी मैजिक यहा भी काम करेगा।
उधर, काग्रेस का प्रत्यक्ष समर्थन किसी को नहीं मिला है। जिससे भाजपा की राह आसन होती दिख रही है। चुनावी बिसात पर सड़क, सीवरेज, पानी समेत स्थानीय मुद्दे गर्म हैं, तो पार्टी की प्रचार मंडली मोदी का नाम भी भुना रही है। उन्हें इस बात का भली भाति अहसास है कि नमो का जादू टर्निग प्वाइंट बन सकता है। तर्क यह भी है कि छावनी एक्ट में संशोधन, निर्वाचित सदन के अधिकारों में बढोत्तरी, ग्राट इन एड में वृद्धि व जन योजनाओं के लिए बजट समेत केंद्र स्तर के अन्य मसलों पर मोदी सरकार सकारात्मक पहल करेगी। लेकिन, इसकी राह तभी प्रशस्त होगी जब कैंट बोर्डो में भाजपा को बहुमत मिलेगा।
क्लेमेनटाउन कैंट में पिछली दफा भाजपा को बहुमत था जबकि देहरादून कैंट में काग्रेस ताकतवर बनकर उभरी भी। जबकि विधान सभा क्षेत्र पर आका जाए तो तस्वीर उलट है। क्लेमेनटाउन कैबिनेट मंत्री दिनेश अग्रवाल का क्षेत्र है, तो देहरादून कैंट भाजपा विधायक हरबंस कपूर व गणेश जोशी का। इनकी क्षेत्र में अपनी राजनीतिक हैसियत है और कई तरह के स्थानीय समीकरण भी। ऐसे में यहा कौन सा राजनीतिक फैक्टर काम करेगा इसकी तह तक पहुंचने में अभी वक्त लगेगा। क्योंकि, सियासत की गणित अभी चल ही रही है। अब यह तो परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा कि ऊंट किस करवट बैठेगा।