हिमालयी राज्यों को मिले ग्रीन बोनस: निशंक
राज्य ब्यूरो, देहरादून: हरिद्वार सांसद व पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में विशेष योगदान की एवज में हिमालयी राज्यों को ग्रीन बोनस दिए जाने की मांग उठाई। उन्होंने केंद्र सरकार के वन एवं पर्यावरण के बजट को सुरक्षित व संतुलित बताया। साथ ही, केंद्र सरकार से उत्तराखंड में उनके मुख्यमंत्रित्वकाल में शुरू हुए स्पर्श गंगा बोर्ड व हिमनद प्राधिकरण बनाने की योजनाओं को अपने हाथों में लेने की मांग भी की।
प्रेस को जारी बयान में हरिद्वार सांसद डा. निशंक ने कहा कि केंद्र ने वन एवं पर्यावरण के बजट में गत वर्ष की तुलना में इस बार सैकड़ों करोड़ रुपये की अतिरिक्त धनराशि का प्रावधान किया है। पर्यावरण संतुलित रखने में हिमालयी राज्यों खास तौर पर उत्तराखंड का विशेष योगदान है। लिहाजा, उत्तराखंड समेत अन्य हिमालयी राज्यों को पर्याप्त ग्रीन बोनस दिया जाना चाहिए। जून 2013 जैसी भीषण दैवीय आपदाओं से बचने के लिए मौसम की पूर्व सूचना हेतु राजय में पांच डॉप्लर रडार लगाए जाने चाहिए।
बजट में इस व्यवस्था के लिए भी उन्होंने वन मंत्री का आभार जताया। उन्होंने कहा कि वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत जेा गांव बुरी तरह प्रभावित होकर पुनर्वास के लिए भटक रहे हैं, उन्हें तत्काल प्रभाव से पुनर्वासित किया जाए। हरिद्वार के बाढ़ प्रभावित गांवों को भी राहत दी जाए। साथ ही, स्पर्श गंगा बोर्ड व हिमनद प्राधिकरण के महत्व को राज्य की वर्तमान सरकार नहीं समझ पाई है। लिहाजा, इन दोनों अभियानों को भी केंद्र सरकार को अपने हाथों में लेना चाहिए।
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आपदा में जनहानि की उच्च स्तरीय जांच की मांग
हरिद्वार सांसद डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने संसद में शून्यकाल के दौरान उत्तराखंड में दैवीय आपदा के मुद्दे पर राज्य सरकार पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा उत्तराखंड को दी गई आपदा राहत राशि का सदुपयोग नहीं हो पा रहा है। सामाजिक, सामरिक, सांस्कृतिक, धार्मिक व आर्थिक क्षति को देखते हुए आपदा पर श्वेत पत्र जारी होना चाहिए। उत्तराखंड में दैवीय आपदा में 24 राज्यों के करीब 20 हजार से अधिक लोगों को जान गंवानी पड़ी थी। जो लोग इस प्रलय से जान बचाकर पहाड़ों में ऊपर की ओर भागे थे, समय पर नहीं निकाले जाने के कारण भूख, प्यास व ठंड से बेमौत मारे गए। सैकड़ों नर कंकाल आज भ्ीा जंगलों में मिल रहे हैं। उन्होंने आपदा के दौरान लापरवाही से हुई जनहानि की केंद्रीय एजेंसी से उच्च स्तरीय जांच कराने व दोषियों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की मांग भी की। साथ ही, केंद्र सरकार से चारधाम यात्रा मार्गो को अपने हाथों में लेने की मांग भी उठाई।