मैदान में महारथी, आसमान में सारथी
विकास धूलिया, देहरादून
यूं तो इस लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी चयन और प्रचार के मोर्चे पर भाजपा ने कांग्रेस को पीछे छोड़ दिया मगर एक मोर्चा ऐसा भी है, जहां कांग्रेस अपनी मुख्य प्रतिद्वंद्वी भाजपा पर फिलहाल भारी पड़ती दिख रही है। यह है भाजपा के प्रचार अभियान में राज्य स्तरीय 'मास अपील' रखने वाले नेता की कमी। ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड में भाजपा के पास ऐसे नेता हैं ही नहीं, मगर जितने हैं वे स्वयं चुनाव मैदान में ताल ठोक रहे हैं और अपनी सीटों पर फंस कर रह गए हैं। इसके उलट कांग्रेस की तरफ से अकेले मुख्यमंत्री हरीश रावत सभी पांचों सीटों पर ताबड़तोड़ तूफानी प्रचार अभियान में जुटे हुए हैं।
भाजपा ने होली से ठीक पहले गुजरी 15 मार्च को ही राज्य की पांचों लोकसभा सीटों पर अपने प्रत्याशियों के नामों का ऐलान कर दिया था, लिहाजा प्रत्याशी तभी से अपने-अपने लोकसभा क्षेत्रों में प्रचार अभियान में जुट गए। इस एक महीने के दौरान सभी प्रत्याशी अपने लोकसभा क्षेत्र को कम से कम एक बार तो नाप ही चुके हैं। इसके ठीक उलट स्थिति कांग्रेस के साथ है। कांग्रेस ने राज्य की पांचों सीटों के लिए अभी एक सप्ताह के भीतर ही प्रत्याशियों के नामों का ऐलान किया। अब जाकर कांग्रेस के चुनावी महारथी अपने क्षेत्रों में सक्रिय हुए हैं। प्रत्याशियों के नामों की घोषणा में देरी होने पर मुख्यमंत्री हरीश रावत ने स्वयं ही राज्यभर में दौरे आरंभ कर दिए। इस दौरान वह प्रत्याशी का नाम तय न होने के कारण पार्टी के लिए ही वोट अपील करते रहे।
रावत पिछले लगभग दो सप्ताह के दौरान राज्य की पांचों लोकसभा सीटों पर पचास से ज्यादा जनसभाएं और रोड शो कर चुके हैं। इन दिनों रोजाना वह अलग-अलग लोकसभा क्षेत्रों में तीन-चार कार्यक्रमों में हिस्सा ले रहे हैं। बतौर मुख्यमंत्री हरीश रावत के लिए सूबे में चुनावी कमान संभालना उनकी जिम्मेदारी तो है ही, साथ ही मजबूरी भी। दरअसल, मुख्यमंत्री को कांग्रेस के अन्य क्षत्रपों का साथ नहीं मिल रहा है। पौड़ी गढ़वाल सीट से सांसद रहे सतपाल महाराज पहले ही पार्टी से पल्ला झटक चुके हैं जबकि दूसरे कद्दावर नेता विजय बहुगुणा अब जाकर प्रत्याशी घोषित होने पर अपने पुत्र साकेत के प्रचार अभियान में कूदे हैं। इस स्थिति से निबटने के लिए हरीश रावत स्वयं ही पूरे राज्य का दौरा कर रहे हैं।
उधर, अब तक चुनाव के हर मोर्चे पर आगे नजर आ रही भाजपा इस मामले में कांग्रेस के मुकाबले कुछ कमतर दिख रही है। कारण, पार्टी के राज्यभर में प्रभाव रखने वाले तीनों बड़े नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी, भगत सिंह कोश्यारी व डा. रमेश पोखरियाल निशंक स्वयं चुनाव मैदान में हैं। खंडूड़ी पौड़ी गढ़वाल, कोश्यारी नैनीताल और निशंक हरिद्वार सीट पर ताल ठोक रहे हैं। हालांकि भाजपा द्वारा तीनों पूर्व मुख्यमंत्रियों को प्रत्याशी बनाए जाने से पहले ये दिग्गज राज्यभर में प्रचार अभियान की शुरुआत कर चुके थे लेकिन जैसे ही पार्टी ने इनके नामों का ऐलान किया, ये अपने-अपने लोकसभा क्षेत्रों तक ही सिमट कर रह गए। हो सकता है आने वाले दिनों में ये भाजपाई दिग्गज प्रदेश भर का दौरा करें मगर फिलहाल तो वे अपने क्षेत्र में वोट बैंक सहेजने की कवायद में ही जुटे हैं।
इससे पूर्व 2007 व 2012 के राज्य विधानसभा चुनाव और 2009 के लोकसभा चुनाव में यह त्रिमूर्ति राज्यभर में सक्रिय रही। हालांकि तब खंडूड़ी और निशंक विधानसभा चुनाव भी लड़ रहे थे मगर छोटी-छोटी विधानसभा होने के कारण इन्हें अपने क्षेत्र से बाहर निकलने का मौका आसानी से मिल गया। वैसे भाजपा के पास प्रदेश अध्यक्ष तीरथ सिंह रावत और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय भट्ट, जो पार्टी की चुनाव अभियान समिति के संयोजक भी हैं, जैसे वरिष्ठ नेता भी हैं जो पूरे राज्य में पार्टी प्रत्याशियों के पक्ष में माहौल बनाने की मशक्कत में जुटे हैं लेकिन इनका राजनैतिक कद और छवि ऐसी नहीं कि उन्हें पांचों लोकसभा सीटों पर असरदार माना जा सके। इन दोनों नेताओं का प्रभाव क्षेत्र विशेष तक ही सीमित कहा जा सकता है।