अपने ही घरोंदों को छोड़ना पड़ा
जागरण संवाददाता, ऋषिकेश :
पहले ही पलायन का दंश झेल रहे पहाड़ से अब प्रकृति भी रूठ गई है। आपदा के रूप में टूटते-बिखरते पहाड़ों ने यहां के वाशिंदों को भी अपने घरोंदे छोड़ने को मजबूर कर दिया।
ग्राम ह्यूंण गुप्तकाशी रुद्रप्रयाग निवासी बीडी सेमवाल सोमवार सायं अपने परिवार के साथ जौलीग्रांट हवाई अड्डे पर पहुंचे। बहू हेमलता व पोते सिद्धांत व वंशिका के साथ यहां पहुंचे बीडी सेमवाल ने बताया कि अब उन्होंने देहरादून में ही रहने का निर्णय लिया है। वह बताते हैं कि दैवीय आपदा ने पूरी केदारघाटी को ही तबाह कर दिया है। गांव में अब ऐसा सन्नाटा है कि वहां एक रात काटनी भी मुश्किल हो रही है। हम तो बचपन से ही पहाड़ों में रहे और कभी सोचा भी नहीं था कि ऐसे दिन देखने पड़ेंगे। मगर, अब गांव सुरक्षित नहीं है, आसपास क्षेत्र में जहां-तहां जमीन पर दरारें पड़ गई हैं। जो कब किसी विपदा का कारण बन जाए कह नहीं सकते। उन्होंने बताया कि बेटा देहरादून में रहता है और अब वह परिवार के साथ वहीं जा रहे हैं। अपने पुत्र 12 वर्षीय आभास और 10 वर्षीय अनीश के साथ यहां पहुंची ग्राम कोठेड़ा गुप्तकाशी रुद्रप्रयाग निवासी रेखा ने बताया कि वह चंडीगढ़ में रहते हैं। हर बार गर्मियों की छुट्टियों में वह परिवार के साथ गांव आते हैं। इस बार भी आए थे, बच्चे गांव की आबोहवा में खुश थे। मगर, अचानक जाने हमारे पहाड़ों को किसकी नजर लगी। पूरी केदार घाटी तबाह हो गई और गांव भी खतरे में पड़ गए। संपर्क कटने से गांवों में अब राशन-पानी का भी संकट हो गया है। हमें अभी एक महीने और गांव में रहना था मगर, इसी डर ने हमें पहले ही भागने को मजबूर कर दिया।
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