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अब किसी की प्यास नहीं बुझाता कौल का नौला

संवाद सहयोगी, चम्पावत : कुमूं यानी कि चम्पावत के लोगों के माल यानी कि तराई क्षेत्र में आने-जाने के ल

By Edited By: Published: Fri, 27 May 2016 07:08 PM (IST)Updated: Sat, 28 May 2016 09:53 AM (IST)
अब किसी की प्यास नहीं बुझाता कौल का नौला

संवाद सहयोगी, चम्पावत : कुमूं यानी कि चम्पावत के लोगों के माल यानी कि तराई क्षेत्र में आने-जाने के लिए बने पैदल रास्ते पर बना शानदार कौल का नौला अब किसी की प्यास नहीं बुझाता। किसी जमाने में इस नौले का स्वच्छ व शीतल जल थके हुए राहगीरों में नई जान फूंक देता था।

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टनकपुर-चम्पावत-पिथौरागढ़ रोड बनने से पहले पहाड़ के लोग तराई भाबर पैदल ही आया जाया करते थे। लोग जिन रास्तों का प्रयोग करते थे, उसे चंद व पाल राजाओं ने बनाए थे। मुख्य रास्ते को टनकपुर-अस्कोट पैदल मार्ग के रूप में आज भी जाना जाता है। इसके कई शाखा मार्ग भी थे। उनमें से एक प्रमुख मार्ग चम्पावत, हिंग्लादेवी, बनलेख, मौराड़ी, बडोली, चानपुर होते हुए चल्थी तक था। यह रास्ता चल्थी में टनकपुर-अस्कोट पैदल मार्ग से जुड़ता था। यह रास्ता आज भी ठीकठाक हालत में है। इसकी देखरेख अब वन विभाग करता है।

इसी रास्ते पर मौराड़ी में शानी देव मंदिर के समीप कौल का नौला है। उसकी बनावट देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि वह चंद राजाओं के समय बना होगा। क्षेत्र के बुजुर्ग भी कुछ ऐसा ही कहते हैं। बताते हैं कि सैकड़ों साल से छह दशक पहले तक इस रास्ते पर लोग चला करते थे। बडोली से मौराड़ी तक खड़ी चढ़ाई चढ़ने के बाद राहगीर इस नौले का शीतल व स्वच्छ जल पीकर पास ही बने धर्मशाला आराम करते थे। बाद में नई ऊर्जा प्राप्त कर चम्पावत, नरियालगांव, खेतीखान, पल्सों, ललुवापानी समेत आसपास के क्षेत्रों में स्थित अपने घरों को रवाना होते थे। सड़क बनने के बाद इस रास्ते से अब कम ही लोग चलते हैं। इसी के साथ नौले की उपेक्षा शुरू हो गई और आज उसमें पीने योग्य पानी नहीं बचा है।

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करीब छह दशक पहले तक लोग इस रास्ते से चलते थे, तब तक नौले की स्थिति बेहतर थी। लोग यहां रुकते थे। पानी पीते थे। देवताओं को भी इसी नौले के जल से नहलाया जाता था। उपेक्षा के चलते नौला दुर्दशा का शिकार बन गया है। लोगों को चाहिए कि एतिहासिक नौले का संरक्षण करें।

गिरधारी दत्त जोशी, स्थानीय निवासी

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कौल का नौला क्षेत्र को एक विशेष पहचान देता था। यहां रुकने वाले राहगीरों की वजह से यहां चहल पहल रहती थी। एतिहासिक नौले को बचाने के लिए लोगों को आगे आना चाहिए। इन्हें केवल नौला न मान कर एतिहासिक धरोहर माना जाना चाहिए। जिम्मेदार विभागों को इनके संरक्षण का कार्य करना चाहिए।

गोविंद बल्लभ जोशी, स्थानीय निवासी


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