चम्पावत की चाय, सात समंदर पार
जागरण संवाददाता, चम्पावत : चंद राजाओं की राजधानी चम्पावत में उत्पादित चाय का कारोबार अब सात समंदर पा
जागरण संवाददाता, चम्पावत : चंद राजाओं की राजधानी चम्पावत में उत्पादित चाय का कारोबार अब सात समंदर पार भी हो रहा है। यूरोपियन देशों के लोग यहां की जैविक चाय की चुस्की से अपने को तरोताजा महसूस करने लगे हैं। पिछले दो सालों में यहां 38 हजार किलो का उत्पादन हुआ। 14 ग्राम पंचायतों के 172 हेक्टेयर क्षेत्र में चाय की खेती लहलहाने लगी है, जिससे ग्रामीणों की आय बढ़ने के साथ ही हर दिन चार सौ श्रमिकों को भी रोजगार मिल रहा है।
उल्लेखनीय है कि दो सौ साल पहले जब अंग्रेज चम्पावत आए थे, उस समय उन्होंने चाय की खेती शुरू की थी। लेकिन वह सीमित स्थानों पर ही हो सकी। आजादी के बाद यह बागान भी रखरखाव के अभाव में उजड़ गए। टी बोर्ड के गठन के बाद वर्ष 1995-96 से पुन: पर्वतीय क्षेत्रों में चाय विकास योजना को लागू करने के प्रयास हुए। चम्पावत जनपद में वन पंचायत सिलंगटाक में चाय बागान की शुरुआत हुई। 2004 में फिर से चाय की खेती को बढ़ावा देने के लिए ग्राम पंचायतों में काश्तकारों की भूमि पर इसे लगाने की पहल हुई। 2007 में छीड़ापानी में नर्सरी बनाकर इसके रोपण में तेजी आ गयी। अभी तक जनपद की सिलंगटाक, छीड़ापानी, मुड़ियानी, मौराड़ी, मझेड़ा, चौकी, च्यूरा खर्क, भगाना भंडारी, नरसिंह डांडा, कालूखाण, गोसनी, फुंगर, लमाई, चौड़ा राजपुर, खेतीगाड़, बलाई आदि ग्राम पंचायतों की 172 हेक्टेयर भूमि में चाय की पौंध लहलहाने लगी है। टी बोर्ड के स्थानीय मैनेजर डैसमेंड बताते हैं कि चाय के पौधों की नर्सरी यहां तैयार होने से करीब चार सौ परिवारों को प्रतिदिन रोजगार मिल रहा है। ग्राम पंचायतों में मनरेगा योजना के तहत भी इस खेती को प्रोत्साहित करने से अब कई काश्तकार सामने आने लगे हैं।
उन्होंने बताया कि शुरुआत में टी बोर्ड द्वारा चाय के पौंधों के रोपण के साथ ही तीन साल तक लगातार इसकी देखभाल की जा रही है और सात साल बाद भूमि स्वामी को पूरा स्वामित्व दे दिया जाता है। पिछले दो सालों में यहां 38 हजार किलो की एक्सपोर्ट क्वालिटी की जैविक चाय का उत्पादन हुआ। इस वर्ष अप्रैल माह तक 50 हजार किलो के उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है।
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कोलकाता से विदेशों को जाती है चाय
दरअसल, चम्पावत की जैविक चाय की मार्केटिंग कोलकाता में होती है। पैरा माउंट मार्केटिंग कंपनी द्वारा इस चाय को खरीदा जाता है, जहां से इसे जर्मनी इग्लैंड सहित यूरोपियन देशों में भेजा जा रहा है। वर्तमान में चाय की बिक्री दर 640 से 1200 रूपए प्रतिकिलो है।
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वन पंचायतों में भी हो चाय की खेती
वन पंचायत सरपंचों का कहना है कि खाली पड़ी वन पंचायतों की बंजर भूमि पर चाय की खेती का रोपण होना चाहिए। ढकना, डिंगडई, चौकी, पुनेठी की वन पंचायत भूमि तो इसके लिए बेहतर कारगर है। इसका बकायदा मृदा परीक्षण भी हो चुका है। इस बारे में वनपंचायत सरपंचों की ओर से टी बोर्ड को प्रस्ताव भी भेजे गए हैं। लेकिन वर्ष 1997 में न्यायालय के एक फैसले के बाद वन पंचायतों में अन्य व्यावसायिक गतिविधियों पर रोक लगी है। जिसकी वजह से टी-बोर्ड वन पंचायतों की भूमि पर चाय बागान विकसित नहीं कर पा रहा है।
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बजट की कमी से नहीं मिल रहा मानदेय
लोगों की आर्थिक आय का जरिया बनी चाय की खेती पर भी धन की कमी का असर दिखने लगा है। टी-बोर्ड द्वारा बजट मुहैया न कराने से अभी तक मजदूरों को दिसंबर माह से मानदेय नहीं मिल पाया है। जिस कारण वह आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं।