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झोपड़ी में पड़ी थी चर्च की नींव

चम्पावत : सन 1816 में सिंगौली संधि के बाद जब गोरखाओं ने टिहरी रियासत को छोड़कर शेष उत्तराखंड को अंग्र

By Edited By: Published: Sun, 21 Dec 2014 09:09 PM (IST)Updated: Sun, 21 Dec 2014 09:09 PM (IST)
झोपड़ी में पड़ी थी चर्च की नींव

चम्पावत : सन 1816 में सिंगौली संधि के बाद जब गोरखाओं ने टिहरी रियासत को छोड़कर शेष उत्तराखंड को अंग्रेजों को नजराने के तौर पर दिया, तभी से यहां ब्रिटिश हुकुमत की नींव पड़ी। 1790 में चंद राजाओं को परास्त कर 1816 तक गोरखाओं का अधिपत्य रहा। ब्रिटिश हुकुमत के साथ ही यहां अंग्रेजों ने अपनी इबादतगाहों का निर्माण किया।

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1872 में पौड़ी के साथ ही चम्पावत को तहसील बनाने के बाद अंग्रेज अधिकारियों ने इस क्षेत्र में अपने आशियाने बनाए। चम्पावत के फूलगड़ी और लोहाघाट एबट माउंट में शुरुआती रूप में अंग्रेजों के बंगले बने। 1891 में इग्लैंड से आई मिस एनी न्यूट्रन बडन और मिस डॉ. ऐज ने चम्पावत के फूलगड़ी में झोपड़ी बनाकर मैथोडिस्ट चर्च की नींव रखी। उन्होंने मिशनरी के तहत कार्य करते हुए यहां के कई लोगों को ईसाई समुदाय से भी जोड़ा। अंग्रेज कमिश्नर एटकिंसन इस चर्च में कई बार प्रार्थना में शामिल हुए ।

पादरी सुरेंद्र सिंह बताते हैं कि 1931 में अंग्रेज आगेल डी ने चर्च को पत्थरों और टिन से नया स्वरूप दिया। जो अब भी विद्यमान है। यहां तमाम अंग्रेज अधिकारी प्रार्थना में शामिल हुए हैं। आजादी से पूर्व तक अंग्रेज फादर हाट किंग, पार्लन, विलियम आदि चर्च के पादरी रहे। वर्ष 1948 के आसपास अंग्रेज जब स्वदेश को लौटे तो चर्च की व्यवस्थाएं भी मिशनरी में शामिल भारतीय मूल के इसाइयों को दे गए। इसके बाद फादर एपट वर्ष 1993 तक यहां पादरी रहे। उसके बाद उनके पुत्र सुरेंद्र सिंह यह दायित्व संभाल रहे हैं।

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रहन-सहन पूरी तरह पर्वतीय

चम्पावत : वर्तमान में यहां ईसाई समुदाय के 22 परिवार निवास करते हैं। भले ही वह प्रभु ईशु मसीह को पूजते हों। लेकिन उनका रहन-सहन और बोली-भाषा यहीं की तरह पर्वतीय है। अधिकांश मध्यम वर्गीय परिवारों से हैं। मेहनत, मजदूरी से ही आजीविका चलती है।

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क्रिसमस की तैयारिया जोरों पर

चम्पावत : इन दिनों क्रिसमस को लेकर ईसाई समुदाय में तैयारियां जोरों पर हैं और चर्च के साथ ही लोग अपने घरों में रंग-रोगन कर उन्हें सजाने में जुटे हुए हैं। क्रिसमस पर्व पर मुख्य रूप से केक बनाए जाते हैं। पहले इन्हें बरेली आदि स्थानों से मंगाया जाता था। लेकिन अब चम्पावत में भी आधा दर्जन बेकरियां होने से केक यहीं बनाए जाते हैं।


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