पानी जुटाने में बीतता आधा दिन
चम्पावत : पहाड़ के तमाम गांवों में पेयजल अभी भी लोगों से कोसों दूर है। जरूरतभर पानी जुटाने में ही आधा
चम्पावत : पहाड़ के तमाम गांवों में पेयजल अभी भी लोगों से कोसों दूर है। जरूरतभर पानी जुटाने में ही आधा दिन बीत जाता है। तमाम योजनाएं भी कारगर साबित नहीं हुई हैं।
एशिया का वाटर टैंक कहे जाने वाले हिमालय क्षेत्र में पानी के स्रोत निरंतर कम हो रहे हैं। जो पानी है भी वह नदियों के माध्यम से मैदान की ओर बह जाता है। आजादी के 68 साल बाद भी लोगों को पेयजल उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। दूरस्थ गांवों के लोगों को जरूरत भर पानी जुटाने में ही आधा दिन बीत जाता है। चम्पावत, लोहाघाट, पाटी, बाराकोट विकासखंडों में 288 ऐसे तोक हैं, जहां लोगों को काफी दूर से पानी ढोना पड़ता है। वे गधेरों और प्राकृतिक स्रोतों पर निर्भर हैं।
पेयजल व्यवस्था के नाम पर स्थापित योजनाएं कारगर साबित नहीं हो रही हैं। जिले में जल संस्थान की 291 योजनाओं में से 50 योजनाएं बंद हैं। पिछले साल स्वजल ने स्वैप मोड के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में 134 योजनाएं बनाई। 165 बरसाती टैंकों का निर्माण किया गया लेकिन जल विहीन क्षेत्र अभी भी अछूते हैं।
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इनसेट 1 --
15 से 20 हजार की आबादी प्रभावित
जल निगम के अधिशासी अभियंता एचसी भारती के मुताबिक हाल ही में पेयजल से वंचित क्षेत्रों का सर्वे कराया था। इसमें पाया कि 288 तोकों में पेयजल योजनाएं नहीं हैं। 15 से 20 हजार आबादी प्रभावित है। कुछ ऐसे तोक हैं जहां योजनाओं से आंशिक रूप से पानी मिल रहा है।
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इनसेट 2 --
स्वजल में बनेंगी 11 योजनाएं
चम्पावत, लोहाघाट, पाटी, बाराकोट विकासखंडों में 11 योजनाएं स्वीकृत की गई हैं। परियोजना प्रबंधक डीके पलड़िया ने बताया कि इन योजनाओं की डीपीआर तैयार की जा रही है। इनमें बगेड़ी, कोट अमोड़ी, घुरचुम, लफड़ा, चमरौली, काकरी, नाथूखोलिया, बसकुनी, कमलेख, त्यारसौं शामिल हैं।
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इनसेट 3 --
16 हैंडपंप सूखे
चम्पावत : जनपद में हैंडपंप भी प्यास बुझाने के लिए कारगर साबित नहीं हो पा रहे हैं। वर्तमान में 720 में से 200 खराब हैं जबकि 16 पूरी तरह सूख गए हैं। बता दें कि हैंडपंप स्थापित करने से पूर्व उस स्थान का सर्वेक्षण किया जाता है।
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इनसेट 4 --
पेयजल योजना पर खर्च होंगे 10 करोड़
चम्पावत : जनपद में इस वर्ष पेयजल योजनाओं के निर्माण और रखरखाव पर 10 करोड़ रुपये खर्च होंगे। स्वजल का बजट इसके अतिरिक्त है।
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इनसेट कोट --
कई तोकों में मानक पूरे न होने की वजह से योजनाएं नहीं बन पा रही हैं। लिहाजा, सरकार को मानकों में ढील देते हुए छूटे तोकों में योजनाएं बनानी चाहिए जिससे जल ही जीवन है का नारा सार्थक हो सके।
-रीता मुरारी, अध्यक्ष, ओम जन विकास समिति