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दुनिया में मचेगी गढ़वाली परिधान की धूम

एलबम के बाद अब गढ़वाली पोशाक बॉलीवुड और हॉलीवुड में भी धूम मचाएगी। हॉलीवुड के फिल्म निर्माता गोरान पासकल जैविक की निर्माणाधीन हिंदी और अंग्रेजी फिल्म देवभूमि में अधिकतर किरदार ठेठ गढ़वाली पोशाक में नजर आएंगे।

By bhanuEdited By: Published: Wed, 06 May 2015 10:50 AM (IST)Updated: Wed, 06 May 2015 11:16 AM (IST)
दुनिया में मचेगी गढ़वाली परिधान की धूम

गोपेश्वर। एलबम के बाद अब गढ़वाली पोशाक बॉलीवुड और हॉलीवुड में भी धूम मचाएगी। हॉलीवुड के फिल्म निर्माता गोरान पासकल जैविक की निर्माणाधीन हिंदी और अंग्रेजी फिल्म देवभूमि में अधिकतर किरदार ठेठ गढ़वाली पोशाक में नजर आएंगे।

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गढ़वाली फिल्मों के ड्रेस डिजाइनर कैलाश ने इस फिल्म में कलाकारों के ड्रेस डिजाइन किए हैं। इस फिल्म में आंगड़ी, अंगड़ी, गात्ती, लवा, पाखली जैसी पुराने पारंपरिक गढ़वाली पोशाक देश दुनिया में दिखेंगे। देवभूमि नामक इस फिल्म की शूटिंग इन दिनों रूद्रप्रयाग जनपद के गुप्तकाशी व चमोली जनपद के जोशीमठ में हो रही है।

हालांकि इस फिल्म की शूटिंग विदेशों में भी होनी है। यह फिल्म हॉलीवुड व बॉलीवुड फिल्म उद्योग के लिए बन रही है। फिल्म में विक्टर बनर्जी मुख्य नायक की भूमिका निभा रहे हैं। लगान, कयामत से कयामत तक सहित कई फिल्मों और धारावाहिकों में काम कर चुके राज जुत्सी सहित कई नामी कलाकार इसमें काम कर रहे हैं।

फिल्म में कलाकार आंगड़ी, लवा, मुंडेशी, फतोगी, घाघरा, रैबदार सलवार, ठाठी, मिरजई, गोल टोपी सहित अन्य पोशाकों में नजर आएंगे। इस फिल्म में ड्रेस डिजाइनर का काम कर रहे कैलाश का कहना है कि उनके लिए इस फिल्म में काम मिलने से ज्यादा परंपरागत वस्त्रों को बनाकर मूल रूप देने की चुनौती थी, जिसे उन्होंने बखूबी पूरा किया है। फिल्म निर्माता को ड्रेस खासी पसंद आई है।

देवभूमि फिल्म के कंसलटेंट डॉ. डीआर पुरोहित के मुताबिक देवभूमि फिल्म में कैलाश की तैयार की गई पोशाक बेहद खूबसूरत हैं। इन्हें पहने हिंदी सिनेमा के कलाकार कहीं से भी गैरपहाड़ी नजर नहीं आ रहे हैं। कैलाश को यहां के गांवों की जीवनशैली और पुरानी पोशाकों का केवल ज्ञान ही नहीं है, बल्कि उसे सिलने का हुनर भी है। सारी ड्रेस शूटिंग स्थल पर ही बनाई गई।

फिल्म की कहानी

फ्रांस के जाने माने फिल्म निर्माता गोरान पासकल जेविक की निर्माणाधीन फिल्म देवभूमि उत्तराखंड के ऐसे युवक पर केंद्रित कहानी है, जो एक घटना के बाद गांव से भाग जाता है। कुछ समय देश के विभिन्न शहरों में काम करने के बाद वह विदेश चला जाता हैं। विदेश में ही वह शादी कर अपना कारोबार कर वहां का नागरिक भी बन जाता है।

अधेड़ अवस्था में उसे बीमारी लग जाती है। चिकित्सक उसे बताते हैं कि दो साल बाद उसकी आंखों की रोशनी चली जाएगी। इसको सुन उसे अपने वतन देखने की लालसा जागती है। वह उत्तराखंड के अपने गांव पहुंच जाता है, लेकिन जब वह अपने गांव पहुंचता है तो आपदा में उसके हमउम्र परलोक सिधार चुके होते हैं। लिहाजा उसे कोई यहां का मानने को तैयार नहीं है।

इस फिल्म में यहां की परंपराओं सहित गांवों के जीवन स्तर, रहन-सहन को दिखाया गया है। इस फिल्म के जरिये उत्तराखंड के लोक संस्कृति संरक्षण के काम में लगें प्रो. डीआर पुरोहित ने यहां की संस्कृति को फिल्मी पर्दे में उतारने के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

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