गांवों की प्रतिनिधि हैं देव छंतोलियों
संवाद सहयोगी, कर्णप्रयाग
उच्च हिमालयी क्षेत्र के दुर्गम पड़ावों से गुजरने वाली श्री नंदा देवी राजजात में छंतौलियों का अपना विशिष्ट महत्व है। विभिन्न पड़ावों पर इनका मिलन दर्शनीय दृश्य साकार करता है। इस बार जात में शामिल होने के लिए 400 से अधिक छंतौलियों का पूजन आरंभ हो गया है। कई गांवों से देव निसाण व छंतौलियां रवाना भी हो चुकी हैं।
छंतौलियों का निर्माण कुशल कारीगरों के हाथों होता है। इनमें देवी की राजछंतौली का विशेष महात्म्य है, जिससे सबसे पहले नैणी गांव की छंतोली का मिलन होता है। जैसे-जैसे यात्रा आगे बढ़ती है देवलगढ़सारी, मलेठी व नौना की रिंगाल से बनी रंग-बिरंगी छंतौलियां भी इसका हिस्सा बन जाती हैं। ग्रामीण देवी नंदा के लिए नये अनाज के साथ श्रृंगार सामग्री, चुनरी, कंगन, चूड़ियां आदि भेंट करने की परंपरा निभाते हैं। गैरोला, चमोला व रतूड़ा गांव में भी छंतोली की पूजा के उपरांत यात्रियों के लिए विशेष पूजा का आयोजन होता है। बगोली के प्रसिद्ध लाटू देवता की छंतोली व निसाण, थापली, चूलाकोट, रतूड़ा आदि गांवों की छंतौलियों के मिलन का दृश्य भावविभोर कर देने वाला होता है। ऊबड़-खाबड़ एवं चट्टानी पैदल मार्गो से होकर भगोती, केदारू देवता, किमोली व नैणी की छंतौलियों के अलावा पट्टी कपीरी, बदरीश छंतोली डिम्मर, स्वर्का व घाट के सुदूरवर्ती गांवों से भी सैकड़ों छंतौलियां वाण में राजजात से मिल जाती हैं। छतौलियों के इतिहास में बारह थोकी ब्राह्मणों के गांव से निकलने वाली छंतौलियों का अपना अलग ही है।