मौत पीछा करती रही, हौसलों ने दिया जीवन
हरीश बिष्ट, गोपेश्वर
उफनते नदी-नाले और पहाड़ों से हो रही पत्थरों की बरसात। हर पल मौत पीछा कर रही थी। लग रहा था कि कभी भी जान चली जाएगी। फिर भी आशंका-उम्मीद के बीच एक-दूसरे का हौसला बढ़ाते हुए आगे बढ़ते रहे। जीने की आस थी तो बचने में कामयाबी भी मिली। गौरीकुंड में खच्चर व्यवसाय कर लोगों को केदारनाथ की यात्रा कराने वाले विकासखंड घाट के 21 ग्रामीणों की मौत से कई बार मुठभेड़ हुई। हर बार बुलंद हौसलों ने इन्हें वहां से जिंदा बचा लिया। इतना कहते-कहते इन खच्चर संचालकों की आंखों में आंसू छलकने लगते हैं।
पेरी निवासी खिलाफ सिंह के मुताबिक 16 जून की रात वह घाट ब्लाक के करीब 50 खच्चर संचालकों के साथ गौरीकुंड में बस पार्किंग के पास टेंट लगाकर ठहरे हुए थे। मूसलाधार बारिश से मंदाकिनी नदी का जल स्तर लगातार चढ़ रहा था। खतरे को भांपते हुए सभी लोग अपने टेंटों से बाहर आकर सुरक्षित स्थान पर जाने के लिए तैयार थे। यही कोई रात के 8.30 बजे का वक्त रहा होगा कि ऊपर चट्टानें टूटने के धमाकों से वातावरण थर्रा उठा। फिर क्या था, सभी सामान व खच्चर छोड़कर जान बचाने को पहाड़ी की ओर दौड़ पड़े। इसी बीच उनके तीन साथी सुरेंद्र सिंह निवासी पल्टिंगधार, हिम्मत सिंह निवासी पेरी व देवेंद्र कुमार निवासी लांखी मलबे में घिर गए और देखते ही देखते उसी में दफन भी हो गए। यह काली रात 47 लोगों ने पहाड़ी पर ही खुले आसमान के नीचे गुजारी।
पेरी निवासी सुलभ सिंह ने बताया कि वे जिस पहाड़ी पर थे, उससे दूर लगातार मलबा गिर रहा था। 17 जून की सुबह चार बजे थोड़ा बारिश थमने पर सभी पहाड़ी से उतरकर दोबारा अपने डेरे की ओर खच्चर व सामान देखने के लिए गए। वहां सब कुछ चौपट हो चुका था। उनके 35 खच्चर और तीन साथियों का कहीं कुछ पता नहीं था। तभी फिर से धमाका हुआ और नदी उफान पर आ गई। गौरीकुंड बाजार बहने लगा। सभी लोग जान बचाने के लिए तितर-बितर हो गए। अब 47 लोगों की उनकी टोली में सिर्फ 21 लोग ही थे। सभी मुंडकटिया की तरफ भागे और 10 किमी की चढ़ाई तय कर पूर्वाह्न 11.30 बजे वहां पहुंच गए। 10 मिनट आराम किया और फिर जंगल के रास्ते आगे के लिए रवाना हुए। मुंडकटिया से 10 किमी की खड़ी चढ़ाई नापकर रात आठ बजे सभी पयाली बुग्याल पहुंचे। यह सर्द रात उन्होंने पयाली बुग्याल में एक पेड़ के नीचे गुजारी।
बूरा गांव निवासी हरीश नेगी भी उन पलों को याद कर सिहर जाते हैं। उन्होंने बताया कि रात को किसी को नींद नहीं आई। बारिश से सभी बुरी तरह भीगे हुएथे। 18 जून की सुबह पांच बजे पयाली बुग्याल से आगे जाने की सोची, लेकिन रास्ता मालूम नहीं था। इस पर कुछ स्थानीय लोगों की मदद से वह नौ किमी की दूरी तय कर त्रिजुगीनारायण के नीचे सोनगंगा के किनारे पहुंचे। यहां लोगों को निकालने के लिए त्रिजुगीनारायण के बाशिंदे पेड़ काटकर कच्चा पुल बना चुके थे। ग्रामीणों ने उन्हें चाय-बिस्कुट दिए और फिर अपने गांव ले गए। वहां न केवल अपने घरों में ठहराया, बल्कि भरपेट खाना भी खिलाया।
19 जून की सुबह पांच बजे यह दल त्रिजुगीनारायण से सोनप्रयाग होते हुए 52 किमी की पैदल दूरी तय कर गुप्तकाशी पहुंचा। तब तक शाम के चार बज चुके थे। यहां पर लंगर में भरपेट खाना खाकर सभी ऊखीमठ के लिए रवाना हुए। गुप्तकाशी से शार्टकट 10 किमी पैदल दूरी तय कर रात नौ बजे के आसपास वह ऊखीमठ पहुंचे। वहां भी लंगर लगा था और ठहरने की व्यवस्था स्थानीय लोगों ने की हुई थी।
20 जून की सुबह छह बजे ऊखीमठ से गोपेश्वर के लिए रवाना होने लगे तो वहां वाहन चल रहे थे। एक मैक्स वाहन में ही सभी 21 लोग सवार हो गए। किसी के पास किराया नहीं था। हमने गोपेश्वर आकर मैक्स वाहन चालक को किराया देने की बात कही थी। हमारी स्थिति देख वह तैयार भी हो गया। दोपहर दो बजे गोपेश्वर पहुंचकर सबसे पहले घायल साथियों को जिला चिकित्सालय भर्ती कराया गया। फिर चालक के ही फोन से रिश्तेदारों से संपर्क कर किराया मंगाया और वाहन को विदा किया। खैर! भगवान की कृपा है कि आज हम अपने परिवार के बीच हैं।
फोटो। 24 जीओपीपी 4
कैप्शन। गौरीकुंड में मौत को मात देकर जिला चिकित्सालय में उपचार कराता हरीश
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