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बागेश्‍वर में घर के आंगन में बनाया गौरैया का बसेरा

बागेश्‍वर में टीट बाजार निवासी और सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद वैष्णव सात साल से गौरैया को अपने घर में संरक्षण दे रहे हैं। उन्होंने अपने घर में लकड़ी के कई घोंसले बनाये हैं।

By Sunil NegiEdited By: Published: Tue, 21 Mar 2017 01:32 PM (IST)Updated: Wed, 22 Mar 2017 05:05 AM (IST)
बागेश्‍वर में घर के आंगन में बनाया गौरैया का बसेरा
बागेश्‍वर में घर के आंगन में बनाया गौरैया का बसेरा
गरुड़, [चंद्रशेखर]: आधुनिकता की अंधी दौड़ में आज बहुत कम लोग ऐसे हैं जो पशु-पक्षियों के दु:ख-दर्द को समझते हैं। लोगों ने जहां आज जानवरों के आवास छीन लिए हैं, वहीं टीट बाजार निवासी और सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद वैष्णव गौरैया सात साल से गौरैया को अपने घर में संरक्षण दे रहे हैं। उन्होंने अपने घर में लकड़ी के कई घोंसले बनाये हैं। इन घोंसलों में चार दर्जन से अधिक गौरैया अपना आशियाना बनाये हुए हैं।
अरविंद वैष्णव जीव-जंतुओं से बहुत प्यार करते हैं। वे कहते हैं कि आज लोगों ने अपने निजी स्वार्थ के चलते पेड़-पौधे काट रहे हैं। ऐसे में पशु-पक्षियों के आवास उनसे छीन लिए गए हैं। ऐसे में पक्षी कहां आवास बनाएंगे। उन्होंने देखा जिन चिड़ियों का उन्हें बचपन में फुदकना बहुत आकर्षित करता था, आज वहीं आवास के लिए दर-दर भटक रही है और विलुप्ति के कगार पर है। 
अरविंद का कहना है गौरैया की तेजी से घटती संख्या के लिए आज के आधुनिक मकान भी जिम्मेदार हैं। पहाडों पर लेंटर वाले मकान बनने से भी गौरैया को घोंसले भी नहीं मिल पा रहे हैं। यहीं पीड़ा उन्हें बार-बार सालती थी। इसी कड़ी में उन्होंने गौरेया के संरक्षण के लिए प्रयास प्रारंभ किए और पिछले सात साल से वे लगातार गौरैया की देखभाल में जुटे हैं। भले ही उनका मकान भी आधुनिक तरीके से बनाया है लेकिन उन्होंने अपने घर में लकड़ी के कई घोंसले बनाये हैं, जिनमें चार दर्जन से अधिक गौरेया पल रही हैं।
वहीं, जंतु विज्ञानी नवीन चंद्र तिवारी का कहना है कि जगह-जगह लगे मोबाइल टावर से निकलने वाले रेडिएशन से भी गौरेया के जीवन पर प्रभाव पड़ने लगा है। इन टावरों से निकलने वाली तरंगो से कई प्राणियों का जीवन खतरे में पड़ने लगा है।
दाना-पानी देकर होती है दिन की शुरुआत
अरविंद अपनी दिन की शुरुआत गौरेया को दाना-पानी देने के साथ ही करते हैं। वे घोंसलों के अलावा अपनी छत पर भी गौरेया के लिए दाना फेंक देते हैं और अलग-अलग बर्तनों में पानी भी रख देते हैं। इसके बाद ही वे अपने काम पर जाते हैं।

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