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बारिश आते ही सिहर उठते हैं ग्रामीण

चंद्रशेखर द्विवेदी, बागेश्वर बरसात के हर मौसम में प्राकृतिक आपदा का दंश पहाड़ के लोग झेलते हैं। हर

By JagranEdited By: Published: Sun, 28 May 2017 01:00 AM (IST)Updated: Sun, 28 May 2017 01:00 AM (IST)
बारिश आते ही सिहर उठते हैं ग्रामीण
बारिश आते ही सिहर उठते हैं ग्रामीण

चंद्रशेखर द्विवेदी, बागेश्वर

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बरसात के हर मौसम में प्राकृतिक आपदा का दंश पहाड़ के लोग झेलते हैं। हर साल कहीं न कहीं नुकसान होता ही रहता है। अभी बारिश शुरू नहीं हुई की पहाड़ में नुकसान शुरू होने लगा है। आपदा की दृष्टि से संवेदनशील गांवों के लोग हर बारिश में सिहर उठते हैं। बस वह यही दुआ करते हैं कि बारिश बिना नुकसान किए हुए ही चली जाए।

जिले में प्रशासन ने आपदा की ²ष्टि से 62 गांवों को संवेदनशील घोषित किया है। यहां बरसात के मौसम में सबसे अधिक नुकसान होता है। आज भी यह गांव मूलभूत सुविधा से दूर हैं। अगर कोई आपदा भी आ जाए तो सूचना मिलनी भी मुश्किल है। प्रशासन बरसात के मौसम को देखते हुए सारी तैयारियां पूरी करने के दावे कर रहा है। लेकिन जमीनी हकीकत से वह कोसों दूर है। उसके पास न तो पर्याप्त उपकरण हैं और न ही पर्याप्त मात्रा में रेसक्यू टीम। कपकोट ब्लाक में एसडीआरएफ की छह लोगों की टीम जरूर तैनात की गई है। जो आपदा के समय सक्रिय रहेगा। ऐसे में बरसात के समय आपदा-बचाव राहत कार्य कैसा होगा यह तो आने वाला ही समय बताएगा।

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चार साल बाद भी नही भरे आपदा के जख्म

बागेश्वर: ¨पडर घाटी में वर्ष 2013 के आपदा के बाद के जख्म आज भी नहीं भरे हैं। आपदा में ¨पडर नदी में बने सभी पुल बह गए थे। यहां काम की गति का अंदाज इससे ही लगाया जा सकता है कि ¨पडर नदी में पुल बनने का काम आज तक भी जारी है। ऐसा नहीं है कि यहां राहत के लिए पैसा नही मिला। दरअसल आपदा राहत का पैसा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया। कागजों में ¨पडर घाटी में बहुत कुछ हो चुका है। जबकि हकीकत काफी भयावह है। सब कुछ ठीक है कि सूचना पर पर्यटक यहां आ तो रहे हैं लेकिन बाद में सिस्टम को कोसते हुए दोबारा न आने की बात कह रहे हैं। ¨पड़र घाटी में बसे गांवों का ज्यादातर लोग पर्यटन व्यवसाय से जुड़े हैं। यह गाइड, पोर्टर, पर्वतारोहण, घोड़े-खच्चर का काम करते हैं। लेकिन आपदा के बाद से पर्यटन व्यवसाय काफी कम हो गया है।

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संचार व्यवस्था लड़खड़ाई

आपदा के समय संचार व्यवस्था की अहम भूमिका होती है। लेकिन जब जिला मुख्यालय में ही संचार व्यवस्था हमेशा लड़खड़ाई रहती है तो दूरस्थ गांवों का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। डीएसपीटी सेट भी ठीक हालत में नही हैं। तहसीलों में आपदा कंट्रोल रूम तो बनाए गए हैं लेकिन उनके पास भी जानकारी नही रहती है।

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45 प्राथमिक स्कूल अतिसंवदेनशील

बागेश्वर: जिले में आपदा की ²ष्टि से 45 प्राथमिक स्कूलों को अतिसंवेदनशील घोषित किया गया है। बरसात के मौसम को देखते हुए यहां अतिरिक्त सुरक्षा बरती जाएगी। इन स्कूलों को दूसरे स्थानों पर शिफ्ट करने की योजना बनाई जा रही है। सबसे अधिक अतिसंवेदनशील प्राथमिक विद्यालय कपकोट ब्लाक में हैं।

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पुर्नवास की राह देखते 227 परिवार

आपदा की ²ष्टि से बेहद संवेदनशील जिले के 18 गांवों के 227 परिवार पुर्नवास की बांट जोह रहे हैं। हर साल आश्वासन मिलता है लेकिन वर्षों बीत जाने के बाद भी कोई कार्रवाई नही हो रही है। इन सभी गांवों को भूस्खलन से भारी खतरा है। यहां अक्सर बारिश के समय आपदा आते रहती है।

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इन गांवों का होना है पुर्नवास

कपकोट ब्लाक - दोबाड़, बड़ेत, लीती, बघर, कर्मी, सीरी, नौकोड़ी, गैरखेत, बमसेरा, बाछम, किलपारा, तोली, लामाघर, गुंठी, कालापैर कापड़ी, पोथिग, स्यूणीदलाणी,

कांडा ब्लाक - सेरी

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आपदा की ²ष्टि से संवदेनशील गांव

कपकोट ब्लाक:- कुंवारी, सूपी, सेरी, दोबाड़, बड़ैत, हर¨सगयाबगड़, बूरमोला, बामनखेत, नौकुड़ी, शीरी, शामा, रमाड़ी, कनौली, नामती चेटाबगड़, खेतीकिसमिला, भनार, माजखेत, चुचेर, लाथी, लीती, हामटीकापड़ी, रातिरकेठी, मल्खाडुगर्चा, गोगिना, रिठकुला, झूनी, खलझूनी, कर्मी, बघर, सरण, बदियाकोट, खर्ककानातोली, लोहारखेत, सनगाड़, खाती, बड़ी पन्याली, रीमा, बाछम

गरुड़:- जिनखोला, मटेना, कौसानी, पयया, कुलाऊं

बागेश्वर ब्लाक:- 4 गांव सहित समस्त खनन क्षेत्र

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आपदा की हर स्थिति से निपटने के लिए विभाग तैयार है। संवेदनशील गांवों की सूची बना ली है। एसडीआरएफ की टीम भी कपकोट में तैनात है। लोगों को प्रशिक्षण भी दिया गया है। जो आपदा बचाव राहत कार्य में अपनी भूमिका निभाएंगे।

-शिखा सुयाल, जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी


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