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सात साल में दोगुनी हो गई खड़िया खानें

सर्वेश तिवारी, बागेश्वर : पहाड़ में खतरे को नजरअंदाज करके खड़िया खनन खनन काकारोबार दिन दूनी रात चौ

By JagranEdited By: Published: Tue, 28 Mar 2017 07:49 PM (IST)Updated: Tue, 28 Mar 2017 07:49 PM (IST)
सात साल में दोगुनी हो गई खड़िया खानें
सात साल में दोगुनी हो गई खड़िया खानें

सर्वेश तिवारी, बागेश्वर :

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पहाड़ में खतरे को नजरअंदाज करके खड़िया खनन खनन काकारोबार दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ा है। सात साल में जिले में प्रशासन ने अंधाधुंध खड़िया खानों का आवंटन किया। इसी दौरान जिले में खान की संख्या 30 से 75 तक पहुंच गई है। हाईकोर्ट के आदेश पर खनन बंद होने से सरकार को सीधे-सीधे 20 करोड़ का चूना लगेगा तो खनन माफिया की कमाई बंद हो जाएगी।

बागेश्वर में खड़िया खनन से सरकार के लिए राजस्व का जरिया है तो अवैध खनन करने वालों के लिए भी मोटी आमदनी का काम है। अंदाजा आप इस बात से भी लगा सकते हैं कि बीते सात साल में खड़िया खानों की संख्या दो गुनी से भी ज्यादा हो गई। यानि 2010 में जहां जिले में खड़िया खानों की महज 30 थी वहीं 2017 में यह आंकड़ा 75 पार करता दिखाई दे रहा है। बहरहाल, इस साल भी करीब एक दर्जन लोगों ने नए आवेदन कर रखे थे। धंधे से होने वाली आय पर गौर करें तो खड़िया कारोबारी सीजन में 150 करोड़ से ज्यादा का खनन कर देते है। जिससे सरकार की झोली में 20 करोड़ का राजस्व अभी तक पहुंच रहा था। हालांकि इस वित्तीय वर्ष में यह राजस्व 20 से बढ़कर 23 करोड़ हो गया था, लेकिन हाई कोर्ट के आदेश के बाद अब सरकार को सीधे तौर पर झटका लगा है। जिले के रीमा से लेकर कांडा तक खड़िया खनन किया जाता है और अब यहां सन्नाटा पसर चुका है।

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रोक के बावजूद उप खनिज भरे ट्रक दौड़े

एक याचिका के बाद आज अचानक फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट ने चार माह के लिए न सिर्फ खनन पर रोक लगा दी है, बल्कि नए पंट्टे आवंटित करने पर भी पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है। हालांकि इस आदेश का खनन कारोबारियों पर कोई फर्क नहीं पड़ा। हाईकोर्ट के आदेश आने के बाद भी कांडा, रीमा आदि इलाकों में खड़िया खनन धड़ल्ले से जारी रहा। जितना उप खनिज खानों से निकला उन्हें डंपरों और ट्रकों में लोड कर अपने गंतव्य के लिए रवाना भी कर दिया गया। जिसका नजारा दैनिक जागरण ने बागेश्वर के नदी गांव के पास अपने कैमरे में भी कैद किया। कुछ ऐसा ही नजारा तहसील रोड पर भी देखने को मिला। हालांकि खनन का यह खेल खुले आम चल रहा था और इसे देखने वाला कोई नही था।

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खनन कारोबारियों को किसी की फिक्र नहीं

मानकों की बात करें तो कहां-कहां और किस-किस तरह खड़िया खनन होना है, यह सब तय है। बावजूद इसके जिले में नियम कायदों को खड़िया कारोबारियों ने ताक पर रख दिया है। नियम देखें तो आबादी के पास खड़िया खनन पूरी तरह प्रतिबंधित है, लेकिन कांडा व आस-पास के इलाकों पर नजर दौड़ाए तो यह सब मानक धरे के धरे नजर आते है। इतना ही नहीं नियम यह भी है कि खनन के बाद कारोबारी उस गड्डे को भी भरेगा जो उसने खड़िया निकाल कर पहाड़ पर बनाया है। यानि इसका भरान मिंट्टी से करना होता है, लेकिन इस नियम को भी कारोबारियों ने खड़िया खानों में दफना दिया है। इसका सीधा असर प्रकृति पर पड़ रहा है। यानि जल स्त्रोतों के रास्ते बदल गए है और कई स्त्रोत सूखने की कगार पर आ गए है।


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