शेर सिंह के हौसले से हरी-भरी हुई धरा, सूखे पड़े नौले पानी से हुए लबालब
अल्मोड़ा जिले के भैंसियाछाना के बूंगा बिलवाल गांव निवासी एक शख्स ने गांव के पास बांज का जंगल उगा दिया। इससे गांव में सूखे पड़े नौले पानी से लबालब भर गए।
अल्मोड़ा, [सर्वेश तिवारी]: चीड़ का जंगल धरती की कोख को सुखा चुका था और पानी की बूंद-बूंद के लिए जिद्दोजहद करने को मजबूर था गांव। ऐसे में एक शख्स ने गांव को इस संकट से निजात दिलाने की ठानी और जुट गया जी-जान से जंगल की काया पलटने में। वर्षों की मेहनत आखिरकार रंग लाई और हरी-भरी हो गई धरा। आज गांव में चीड़ की जगह बांज का जंगल लहलहा रहा है।
भैंसियाछाना के बूंगा बिलवाल गांव निवासी पूर्व प्रधानाध्यापक इस शख्स का नाम है शेर सिंह जड़ौत और हौसला भी शेर जैसा ही। इसी गांव में था पानी का घनघोर संकट। सो, सेवानिवृत्ति के बाद शेर सिंह पानी के संकट को दूर करने के लिए पूरे मनोयोग से जुट गए। उन्होंने पता लगाया कि गांव में पानी का अकाल पड़ने के पीछे अहम वजह चीड़ का जंगल है। जिसने नौले तक सुखा दिए। दो दशक पहले इसकी शुरुआत उन्होंने अपनी ही जमीन से की।
वहां सबसे पहले उन्होंने बांज की नर्सरी तैयार की, लेकिन चुनौती बहुत बड़ी थी। कारण, सामने 20 हेक्टेयर भूमि पर फैला चीड़ का विशाल जंगल था। जैसे-जैसे नर्सरी तैयार होती गई और वह जंगल में बांज के पौधे रोपते गए। नतीजा, 20 हेक्टेयर में फैला चीड़ का जंगल अब बांज के जंगल में तब्दील हो चुका है। इसके सुखद परिणाम भी आए और अर्से से सूखे पड़े नौले पानी से लबालब भर गए। आज गांव में पानी का कोई संकट नहीं है।
खुद-ब-खुद उग गए काफल-बुरांश
बांज का जंगल लहलहाने के बाद इस जमीन और कई गुणकारी पौधे खुद-ब-खुद उगने लगे। बता दें कि चीड़ का पेड़ जमीन की नमी सोख लेता है और अपने आसपास कोई दूसरा पौधा नहीं उगने देता। जानवरों के लिए घास तक नहीं। लेकिन, जब बांज लगा तो धरती में नम हो गई। इसका असर यह हुआ कि जंगल में पहली बार उतीस उगा और फिर बुरांश और काफल के पेड़ भी उगने लगे।
लोगों को भी किया प्रेरित
20 हेक्टेयर में फैले जंगल को साफ करना आसान नहीं था। इसके लिए शेर सिंह ने गांव के लोगों को भी प्रेरित किया। उन्होंने अपनी नर्सरी से लोगों को बांज के बीज और पौधे वितरित करने शुरू किए। कुछ को शेर सिंह की बात समझ आ गई, लेकिन कुछ ने इसका मखौल भी उड़ाया। हालांकि, आज हरे-भरे जंगल को देख पूरा गांव उनका मुरीद है।
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