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बेहद कम मासिक पगार से ग्राम प्रहरी मायूस

By Edited By: Published: Fri, 22 Aug 2014 11:23 PM (IST)Updated: Fri, 22 Aug 2014 11:23 PM (IST)
बेहद कम मासिक पगार से ग्राम प्रहरी मायूस

जागरण संवाददाता, अल्मोड़ा: राजस्व पुलिस की मदद को गांवों में तैनात ग्राम प्रहरी स्वयं को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। पांच सौ रुपये की मासिक पगार पर काम रहे ग्राम प्रहरियों को हाल के महीनों में एक हजार रुपये मानदेय का सब्जबाग तो दिखाया। अभी इसका इंतजार ही चल रहा है। चुनाव ड्यूटी तो करा ली, मगर इस ड्यूटी का मानदेय भी नहीं मिल पाया।

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पहरे तथा राजस्व कार्यो में सहयोग करने के लिए शासन ने एक दशक पूर्व ग्राम प्रहरी नियुक्त किए और तब से वह लगातार कार्य कर रहे हैं। भविष्य में कुछ बेहतरी की उम्मीद व रोजगार की मजबूरी के चलते उस वक्त मात्र 200 रुपये प्रतिमाह की पगार पर ग्रामीण ग्राम प्रहरी के लिए तैयार हो गए। मगर अब उन्हें महंगाई के दौर व उपेक्षा खिन्न कर रही है। उन्हें गांवों में पहरेदारी करना, कोई आपराधिक घटना होने पर उसकी सूचना देना और राजस्व पुलिस को सहयोग करना है। एक ओर सरकार इसे रोजगार मानती है, दूसरी तरफ माली हालत रामभरोसे है। ग्राम प्रहरी में अधिकांश लोग गरीब परिवारों से जुड़े हैं। शुरू से वर्ष 2010 तक उन्हें 200 रुपये मासिक पगार दी गई। इसके बाद इसे बढ़ाकर 300 रुपये और फिर 500 रुपये कर दिया गया। हाल के महीनों में उन्हें 1000 रुपये मानदेय देने का सब्जबाग दिखाया गया। हालांकि मौजूदा महंगाई के दौर में एक हजार रुपये की पगार भी अत्यंत न्यून है, मगर यह भी नहीं मिल पा रही है। इतना ही नहीं हाल के चुनावों में उनसे ड्यूटी भी करा ली, मगर मानदेय देने में कई जगह आनाकानी की जा रही है।

मजेदार बात यह है कि इतने कम मानदेय में भी उन्हें मोबाइल से राजस्व पुलिस या प्रशासन को घटनाओं की सूचना स्वयं के मोबाइल से देने पड़ती है और मोबाइल का बिल खुद वहन करना पड़ता है। इससे उनमें रोष पनप रहा है और वह स्वयं को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। ग्राम प्रहरी नया घोषित मानदेय देने तथा चुनाव ड्यूटी का लंबित भुगतान करने की मांग उठा रहे हैं।

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डीएम से की शिकायत

अल्मोड़ा: तहसील के पटवारी क्षेत्र चौमू अंतर्गत ग्राम सिमल्टी के ग्राम प्रहरी देवी दत्त खोलिया ने जिलाधिकारी को ज्ञापन देकर शिकायत की है कि तहसील में थाना क्षेत्र के ग्राम प्रहरियों को प्रतिमाह एक हजार रुपये मानदेय दिया जा रहा है, जबकि उन्हें मात्र 600 रुपये प्रतिमाह मानदेय मिल रहा है। उन्होंने उन्हें भी समान रूप से एक हजार रुपये मानदेय देने की गुहार लगाई है।


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