पर्याप्त बजट बाद भी पेयजल योजनाएं खस्ता
- आपदा में क्षतिग्रस्त लाइनों की मरम्मत नहीं
- ग्रामीण इलाकों में सबसे अधिक किल्लत
जागरण संवाददाता, अल्मोड़ा: आपदा के दौरान क्षतिग्रस्त होने वाली पेयजल योजनाओं के लिए विभाग को शासन द्वारा पर्याप्त बजट देने के बाद भी पेयजल योजनाओं की हालत खस्ता है। हर साल बरसात के मौसम में पेयजल योजनाओं को खासा नुकसान होता है। लेकिन विभाग पुनर्निर्माण के नाम पर महज औपचारिकता पूरी कर अपनी जिम्मेदारियों से इतिश्री कर लेता है। जिसका खामियाजा भविष्य में ग्रामीण इलाकों के लोगों को भुगतना पड़ता है।
बरसात के मौसम में अतिवृष्टि और आपदा के दौरान पेयजल योजनाओं के क्षतिग्रस्त होने बाद तत्काल उनकी मरम्मत के लिए शासन हर साल विभाग को धन मुहैया कराता है। वर्ष 2013-14 के लिए भी प्रदेश को आपदा और अतिवृष्टि जैसी घटनाओं में क्षतिग्रस्त पेयजल योजनाओं की मरम्मत और उनके पुनर्निर्माण के लिए एनडीआरएफ और एसडीआरएफ के मद में अनुमोदित 27 करोड़ 78 करोड़ रुपये मिले हैं। जिसे आवश्यकता अनुसार प्रत्येक जिले को आवंटित भी किया गया था। इन धनराशि का उपयोग प्राकृतिक आपदा से क्षतिग्रस्त विभागीय व सार्वजनिक पेयजल परिसंपत्तियों का तात्कालिक निर्माण करना था। जिसके लिए तय समय में निर्माण कार्य कराना भी जरूरी शर्तो में शामिल था। लेकिन हर साल अतिवृष्टि में क्षतिग्रस्त होने वाली पेयजल योजनाओं के पुननिर्माण में यह धनराशि खर्च ही नहीं की जाती। कहीं थोड़ा बहुत काम हुआ भी तो उस निर्माण कार्य में गुणवत्ता का इतना अभाव होता है कि जरा भी बारिश में पेयजल लाइनें फिर उसी दशा में आ जाती है। जनपद के भैंसियाछाना, धौलादेवी, सल्ट, स्याल्दे, लमगड़ा व सोमेश्वर विकास खंडों में ऐसी अनेक योजनाएं जो लंबे से अपने पुनर्निर्माण की बाट जोह रही हैं। लेकिन पर्याप्त बजट के बाद भी विभाग के अधिकारी पुनर्निर्माण के प्रस्तावों को फाइलों में बंद रखते हैं। ऐसे में आपदा काल के दौरान सबसे अधिक परेशानी अब ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को भुगतनी पड़ रही है।