..तो अभी सूखी नहीं है माओवाद की जड़ें
दीप सिंह बोरा, रानीखेत शराबबंदी के बहाने जनयुद्ध की अपील ने साफ कर दिया है कि माओवाद की जड़ें उत्
दीप सिंह बोरा, रानीखेत
शराबबंदी के बहाने जनयुद्ध की अपील ने साफ कर दिया है कि माओवाद की जड़ें उत्तराखंड खासतौर पर कुमाऊं में पूरी तरह खत्म नहीं हुई हैं। वर्ष 2005 ऑपरेशन हंसपुरखत्ता व 2010 में उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश में पहली पांत के कमांडरों की ताबड़तोड़ धरपकड़ ने माओवादियों का नेटवर्क पूरी तरह तोड़ दिया था। मगर भूमिगत नेता थ्री यू सेक की साजिश को पूरा करने के लिए संगठन को नए सिरे से खड़ा भी करते रहे। अबकी सात मार्च को माओवादी थिक टैंक प्रशांत राही व हेम मिश्रा को उम्रकैद के बाद द्वाराहाट में हिंसक अपील वाले पोस्टर चस्पा होने व दीवारें पोते जाने के बाद पुलिस व खुफिया तंत्र की नजरें भूमिगत माओवादी नेताओं व जमानत पर छूटे गुर्गो पर जा टिकी है।
प्रतिबंधित संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के भूमिगत कमांडर पहली पंक्ति के टूटते ही दूसरी व तीसरी पांत को रेड कॉरिडोर की साजिश में लगाता रहा है। नवगठित उत्तराखंड का जिक्र करें तो जून 2004 में शिवराज सिंह (लमगड़ा), राजेंद्र फुलारा (द्वाराहाट) व खीम सिंह बोरा (सामेश्वर) आदि ने हंसपुर खत्ता व सौफुटिया में पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी की वर्षगांठ मनाई। बिहार की सशस्त्र टुकड़ी ने इन्हें बाकायदा हथियारों का प्रशिक्षण दिया था।
खुलासे पर हड़कंप मचा। नैनीताल व ऊधम सिंह नगर पुलिस तथा खुफिया तंत्र के संयुक्त ऑपरेशन में 2005 में माओवादी अनिल चौड़ाकोटी सूखीढांग (चंपावत) में धरा गया। माओवादियों के खात्मे को मुहिम थमी नहीं। फिर 22 दिसंबर 07 को 'ऑपरेशन हंसपुर खत्ता' ने माओवादी नेटवर्क तोड़ डाला था। जीवन चंद्र 'जेसी' (अल्मोड़ा), 7 फरवरी 2010 को शिवराज व फुलारा कानपुर में धरे गए। कई जमानत पर छूटे। दरअसल, तराई में फ्रंटल नेता प्रशांत राही की गिरफ्तारी ने उत्तराखंड, यूपी व उत्तरी बिहार (थ्री यू सेक) में 'रेड कॉरिडोर' की साजिश का सनसनीखेज खुलासा किया था। मगर तमाम उठापटक के बावजूद भूमिगत कमांडर पोस्टर व स्लोगन वार के जरिये अपनी मौजूदगी देते आ रहे हैं।
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सब डिवीजन जो आज भी हैं
कुमाऊं में शहरफाटक, सामेश्वर, लमगड़ा, पहाड़पानी (अल्मोड़ा), पिथौरागढ़, चंपावत, चोरगलिया, रामनगर, पीरूमदारा (नैनीताल), रुद्रपुर, दिनेशपुर, हंसपुर खत्ता (यूएस नगर)
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'रेड कॉरिडोर' की साजिश के ये हैं बिंदु
सीपीआइ (माओवादी) का दंडकारिणी (एमपी) से नेपाल तक विस्तार। पीलीभीत, बनबसा व चंपावत को नेपाल से जोड़ उत्तराखंड में जड़ें मजबूत करना। दुर्गम राजस्व व जंगल क्षेत्रों में शिविर। पहाड़ की ज्वलंत समस्याओं पर फोकस। उन्हें कैश कर आम ग्रामीणों को एकजुट कर तंत्र के खिलाफ भड़काना। द्वाराहाट में चस्पा पोस्टर व लाल रंग से लिखे गए स्लोगनों ने जनमुद्दों को कैश कर हिंसा भड़काने के मंसूबों का खुलासा भी कर दिया है।