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ब्रिटिशकाल छोड़िए, आजादी में भी दुर्दशा

संवाद सहयोगी, अल्मोड़ा: जिला मुख्यालय पर ब्रिटिशकाल से स्थापित पशु चिकित्सालय सदर आधुनिकता के इस दौर

By JagranEdited By: Published: Wed, 29 Mar 2017 04:54 PM (IST)Updated: Wed, 29 Mar 2017 04:54 PM (IST)
ब्रिटिशकाल छोड़िए, आजादी में भी दुर्दशा
ब्रिटिशकाल छोड़िए, आजादी में भी दुर्दशा

संवाद सहयोगी, अल्मोड़ा: जिला मुख्यालय पर ब्रिटिशकाल से स्थापित पशु चिकित्सालय सदर आधुनिकता के इस दौर में खुद बीमार सी हालत में है। जो गौशाले जैसे कक्षों में चल रहा है। जर्जर हालत में पहुंचे इसी भवन में जिले का केंद्रीय पशु औषधि भंडार भी है। बरसात, जाड़ा व गर्मी तीनों मौसमों में यहां मुश्किलें खड़ी हैं। जिले के 38 पशु अस्पतालों की पशु औषधियों की हिफाजत पन्नी डालकर करनी पड़ती है। अस्पताल भवन का एक हिस्सा ध्वस्त है, तो दूसरे में दरार और छत जर्जर।

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सन् 1932 में पशु चिकित्सालय सदर अल्मोड़ा अस्पताल यहां एक किराए के भवन में शुरू हुआ और ब्रिटिश हुकूमत का दौर झेलते हुए आजादी के भी कई दशक इसी भवन में पशु अस्पताल ने गुजार दिए। आज भी यह अस्पताल लगभग मात्र 60 रुपये प्रतिमाह पुराने किराये की दर पर चल रहा है। इसे आज तक एक अदद अपना भवन नसीब नहीं हो सका। यहां पशु चिकित्सक व कर्मचारियों के बैठने व सामान रखने का इंतजाम रामभरोसे है, इसके बावजूद इसी भवन में जिले के 38 पशु अस्पतालों व पशु सेवा केंद्रों की औषधियों का भंडार चल रहा है। एक हॉल को तख्तों के पाटेशन से दो हिस्सों में बांट एक में दवा वितरण व कार्यालय बनाया है, दूसरे हिस्से में औषधि भंडार। अगर बिजली न हो, तो दिन में भी इन कक्षों में घुप अंधेरा रहता है। एक सीलन भरे छोटे से कक्ष में पशु चिकित्साधिकारी बैठते हैं। जर्जरता का आलम यह है कि इसमें कई दरारें हैं, तो पिछले हिस्से की छत ध्वस्त होकर अंदर घुस गई। छत जगह-जगह जीर्ण-क्षीण हो चुकी है। बरसात में पानी अंदर घुसना, जाड़े में सीलन व ठंड मुसीबत बनती है, तो गर्मी में अंधड़ से जर्जर टिन छत उड़ने का खतरा। ऐसे में दवाओं व अन्य सामान की हिफाजत को छत पर पॉलीथिन डाल कर काम चलता है। कई बार दवाएं खराब हो जाती हैं।

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भवन के अभाव में काफी दिक्कतें हैं। यहां बरसात व जाड़े में बड़ी परेशानी झेलनी पड़ती है। वैकल्पिक इंतजाम कर दवाओं की हिफाजत करनी पड़ रही है। पशु अस्पताल सदर के नये भवन निर्माण के लिए जमीन तलाशी जा रही है, मगर अभी तक जमीन उपलब्ध नहीं हो सकी, हालांकि इसके लिए प्रयास जारी हैं।

:: डा. पूर्णिमा, पशु चिकित्साधिकारी सदर, अल्मोड़ा


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