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गरीबी में भारी कुदरत की मार

जागरण टीम, रानीखेत : इसे कुदरत की मार कहें या कुछ और। तीन भाई। दो से तीन साल का अंतर। पर लगते एक जैस

By JagranEdited By: Published: Thu, 23 Mar 2017 07:07 PM (IST)Updated: Thu, 23 Mar 2017 07:07 PM (IST)
गरीबी में भारी कुदरत की मार
गरीबी में भारी कुदरत की मार

जागरण टीम, रानीखेत : इसे कुदरत की मार कहें या कुछ और। तीन भाई। दो से तीन साल का अंतर। पर लगते एक जैसे हैं। सबसे बड़े के हाथ-पांव में 27, मझले की 26 व तीसरे भाई की 24 उंगलियां। वजन भी उम्र से कहीं अधिक। खुराक भी उतनी ही ज्यादा। अफसोस कि शारीरिक असमानता का दंश झेल रहे तीनों किशोर दिन ढलने के बाद आंखों से देख भी नहीं पाते। चिकित्सा विशेषज्ञ इसे आनुवांशिकी से जुड़ा जैनेटिक डिसऑर्डर रोग कहते हैं। सौ में एकाध प्रतिशत बच्चों में ही जींस की गड़बड़ी के कारण ऐसा होता है।

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नियति की मार से बेजार जंतवाल परिवार विकासखंड बेतालघाट व ताड़ीखेत से सटे धारी गाव में रहता है। गरीबी में खेती किसानी से गुजर-बसर करने वाले शकर सिंह व सावित्री देवी को पुत्र रत्न की प्राप्ति तो हुई लेकिन कुदरत का खेल ऐसा होगा, शायद उन्हें अहसास भी नहीं था। बड़ा बेटा 17 वर्षीय बालम10वीं में पढ़ता है। उसके हाथ-पांव में कुल 27 उंगलियां हैं। 9वीं में पढ़ने वाले 15 साल के गौरव की 26 जबकि सातवीं का छात्र 12 वर्षीय कपिल की 24 उंगलिया है।

शारीरिक रूप से अन्य बच्चों से बिल्कुल जुदा तीनों भाई एक जैसे लगते हैं। वजन भी उम्र से कहीं ज्यादा। उस पर दुर्भाग्य ऐसा कि सूर्य ढलते ही इन बच्चों की आंखों के आगे भी अंधेरा छाने लगता है। अनियमित रूप से बढ़ रहे वजन के कारण इन भाइयों की खुराक भी सामान्य से कहीं अधिक है।

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पिता शंकर सिंह जंतवाल कहते हैं, तीनों बच्चे पढ़ाई में औसत हैं। आर्थिक तंगी में पुत्रों की परवरिश की चुनौती लगातार बढ़ती जा रही है। दिव्याग पेंशन व अन्य आर्थिक मदद की गुहार अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों से लगाई भी लेकिन कोई सुनवाई न हो सकी। आर्थिक सहायता न मिलने के कारण माता पिता अब टूटने लगे हैं। इधर सामाजिक कार्यकर्ता व प्रगतिशील किसान विशन सिंह जंतवाल ने समाज कल्याण व स्वास्थ्य विभाग से बच्चों को दिव्याग पेंशन का लाभ दिए जाने की मांग उठाई है। ताकि गरीबी में सहारा व इलाज भी हो सके।

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दिव्याग प्रमाण पत्र के लिए 40 प्रतिशत से अधिक दिव्यांगता की सीमा होनी आवश्यक है। प्रमाण पत्र के लिए आवेदन करेंगे तो निश्चित रुप से लाभ दिलाया जाऐगा।

-जगमोहन सिंह कफोला, समाज कल्याण अधिकारी

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बच्चो की जाच की गई है। यह एक आनुवांशिक (जैनेटिक डिसआर्डर) बीमारी है। तीनों बच्चों के हाथ व पैर में उंगलियों की संख्या व वजन उम्र से कहीं से ज्यादा हैं। उस पर रतौंधी रोग भी है। जाच के बाद तीनों को डिस्ट्रिक्ट अर्ली इंवेस्टिगेशन सेंटर (बेस अस्पताल हल्द्वानी) रेफर किया गया है। बच्चों की हर संभव मदद की जाएगी।

- डॉ. दीपक सती, प्रभारी राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्त्रम टीम टू बेतालघाट


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