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टहनी में धागा बांधने से पूरी होती है मन्नत

चंदन नेगी, अल्मोड़ा जिला मुख्यालय से करीब सात किमी दूर हवालबाग ब्लाक के ग्राम छानी में मौजूद एवं क्

By JagranEdited By: Published: Thu, 23 Mar 2017 07:05 PM (IST)Updated: Thu, 23 Mar 2017 07:05 PM (IST)
टहनी में धागा बांधने से पूरी होती है मन्नत
टहनी में धागा बांधने से पूरी होती है मन्नत

चंदन नेगी, अल्मोड़ा

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जिला मुख्यालय से करीब सात किमी दूर हवालबाग ब्लाक के ग्राम छानी में मौजूद एवं क्षेत्र में दुर्लभ 'कल्पवृक्ष' महज औषधीय गुणों से ही लबरेज नहीं है, बल्कि आस्था, जनविश्वास व कौतुहल का केंद्र है। इसकी मान्यता इतनी है कि कल्पवृक्ष की टहनी में धागा बांधने मात्र से मनोकामना पूरी हो जाती है। मनोकामना पूरी होने के बाद लोग बांधे धागे की गांठ खोलने जाते हैं। ओलिया क्रिस्पाटा वानस्पतिक नाम वाले इस वृक्ष की शिव शक्ति के रूप में मान्यता के कारण प्रतिवर्ष शिवरात्रि पर बड़ी भीड़ लगी रहती है।

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार धरती पर कल्पवृक्ष का समुद्र मंथन के वक्त अस्तित्व में आया। धर्म के प्रति अटूट आस्था रखने वाले लोग इस वृक्ष को साक्षात शिव के रूप में पूजते हैं। अल्मोड़ा के निकट छानी गांव में क्षेत्र का एकमात्र कल्पवृक्ष है। फ्रांस व इटली में बहुतायत पाए जाने वाला कल्पवृक्ष के प्राचीन पेड़ जनश्रुति के अनुसार भारत के काशी, कर्नाटक व अल्मोड़ा के ग्राम छानी में मौजूद है। लोक मान्यता के अनुसार यह वृक्ष हजारों साल पुराना है। छानी गांव में इसी वृक्ष की जड़ पर भगवान शिव का मंदिर स्थित है। मगर आम बोलचाल में कल्पवृक्ष मंदिर के नाम से ही प्रचलित है। मान्यता है कि इस वृक्ष की पूजा-अर्चना से मनवांछित फल मिलता। तंत्र साधना के लिए इस जगह को श्रेष्ठ माना जाता है। संत महात्मा भी यहां पहुंचते हैं। मन्नतें लेकर श्रद्धालुओं का वर्ष भर वृक्ष के दर्शन व पूजा-अर्चना को आना-जाना लगा रहता है। विशेष पर्वो व त्योहारों पर यहां पर खासी भीड़ रहती है। शिव रूप में खासी मान्यता होने के कारण महाशिवरात्रि पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।

अल्मोड़ा के छानी गांव में स्थित कल्पवृक्ष मन्नत पूरी करवाने की अनूठी धार्मिक परंपरा है। मान्यता के अनुसार यहां आने वाले लोग मनोकामना पूरी करने के लिए कल्पवृक्ष की टहनी में एक धागा बांधते हैं। यह परंपरा भी जुड़ी है कि मुराद पूरी होने पर कल्पवृक्ष जाकर वह धागा खोलना होता है। वहीं खिचड़ी बना कर खाने की परंपरा भी है, जिसे शुभ माना जाता है। कल्पवृक्ष जहां आस्था का केंद्र बना है। वहीं औषधीय गुणों से भरा है। इसके बीजों का तेल हृदय रोगियों के लिए बेहद लाभदायी बताया गया है।

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गिरी पत्ती मिलना शुभ

यहां मौजूद प्राचीन कल्पवृक्ष सदैव हरा-भरा रहता है। खासियत ये है कि इसकी पत्तियां इत्तफाक से ही गिरती है। किसी व्यक्ति को इसकी गिरी पत्ती मिलने को बड़ा ही शुभ माना जाता है। अगर यहां पर आने-जाने की सहूलियतें हो जाए, तो यह धार्मिक पर्यटन का नया केंद्र बन सकता है।

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कल्पवृक्ष इस पर्वतीय क्षेत्र के लिए दुर्लभ है। जिसका वानस्पतिक नाम ओलिया क्रिसपाटा है। यह सम शीतोष्ण जलवायु में पाये जाने वाले इस वृक्ष में रोग प्रतिरोधकता काफी है, क्योंकि इसमें एंटी वायरल, एंटी फंगश व एंटी ऑक्सीडेंट पाए जाते हैं।

प्रो. हेमा जोशी, वरिष्ठ वनस्पति विज्ञानी, अल्मोड़ा


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