44 बरस की परवरिश, अब होगी विदाई
दीप सिंह बोरा, रानीखेत अपनी दुर्लभ खूबी के कारण शिकारियों का निशाना बन रहा कस्तूरी मृग (हिमालियन
दीप सिंह बोरा, रानीखेत
अपनी दुर्लभ खूबी के कारण शिकारियों का निशाना बन रहा कस्तूरी मृग (हिमालियन मस्क डियर) अब केंद्रीय आयुर्वेदीय विज्ञान अनुसंधान परिषद (सीसीआरएस) से जुदा हो जाएगा। तकरीबन 44 बरस तक वजूद बचाए रखने के बाद धरमघर (बागेश्वर) स्थित कस्तूरी हिरन का प्रजनन केंद्र जल्द ही वन विभाग अपनी सुपुर्दगी में ले लेगा। सूत्रों की मानें तो जीवन रक्षक दवाओं में वन्य जीवों के अंगों के इस्तेमाल प्रतिबंधित होना इसका बड़ा कारण रहा। दूसरा विलुप्ति के कगार पर पहुंचे इस मृग का संकटग्रस्त प्रजाति में शामिल होना भी इसकी बड़ी वजह माना जा रहा है। बहरहाल, शीघ्र ही इस प्रजनन केंद्र को नैनीताल शिफ्ट कर कस्तूरी हिरनों का कुनबा बढ़ाने की तैयारी तेज हो गई है।
दरअसल, आयुर्वेदिक जीवन रक्षक दवाओं में रामबाण का काम करने वाली कस्तूरी के जनक मृग के संरक्षण को 1972 में केंद्रीय आयुष मंत्रालय ने धरमघर में प्रजनन केंद्र स्थापित किया था। तब से यह आयुष के ही अधीन है। इधर वन्य जीव अधिनियम व ड्रग कॉस्मेटिक एक्ट में महत्वपूर्ण अंगों का दवाओं में इस्तेमाल प्रतिबंधित होने के बाद वन मंत्रालय ने कस्तूरी मृग के संरक्षण के बहाने प्रजनन केंद्र अपनी सुपुर्दगी में लेने की तैयारी कर ली थी। बीते दो तीन वर्षो से आयुष व वन मंत्रालय के बीच कई दौर की बातचीत व पत्राचार हुए। सूत्रों के अनुसार आयुष मंत्रालय प्रजनन केंद्र को वन विभाग के सुपुर्द करने के बजाय कुनबा बढ़ाकर उसके प्राकृतिक हिमालयी आवास में छोड़ने का पक्षधर रहा है। मगर संकटग्रस्त वन्य जीव का हवाला दे वन विभाग ने इसे अपने अधिकार में करने की तैयारी कर ली है।
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क्या है कस्तूरी मृग
प्रकृति के सुंदरतम वन्य जीवों में एक कस्तूरी मृग (हिमालियन मास्क डियर) जो 'ए' श्रेणी का लुप्तप्राय जीव है। उत्तराखंड में केदारनाथ, पिथौरागढ़ व अन्य उच्च हिमालयी बेल्ट, कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखंड के केदारनाथ, फूलों की घाटी, हरसिल घाटी तथा गोविंद वन्य जीव विहार एवं सिक्किम के कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित रह गया है। नर की नाभि से कस्तूरी निकलती है इसलिए इसे कस्तूरी मृग कहते हैं। हिमालय क्षेत्र में यह देवदार, फर, भोजपत्र एवं बुरांश बहुल जंगलों में लगभग 3600 से 4400 मीटर की ऊंचाई पर रहता है। धरमघर के अलावा कस्तूरी मृग प्रजनन केंद्र कांचुला खर्क व अस्कोट कस्तूरी अभयारण्य पिथौरागढ़ में भी है।
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सोने से भी महंगा, इसलिए खतरा
सींग नहीं जबकि नर के दो पैने दांत जबड़ों से बाहर निकले रहते हैं। जो आत्मरक्षा व जड़ी बूटियों को खोदने में सहायक। मादा वर्ष में एक या दो बच्चों को जन्म देती है। कस्तूरी एक साल की आयु के बाद ही बनती है जो अमूमन 30 से 45 ग्राम तक होती है। यह जननाग के पास एक ग्रंथि से एक रस निकलता है, जो चमड़ी के नीचे थैलीनुमा स्थान पर जमा रहता है, जो कस्तूरी बनता है। जो दुनिया के सबसे महंगे पशु उत्पाद, यहां तक कि सोने से भी महंगा है। जैविक यौगिक मस्कोने इसकी कीमत को बढ़ा देता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत लगभग 30 लाख रुपये प्रतिकिलो। इसीलिए अवैध शिकार से इसका वजूद संकट में है। चीन 200 किलो कस्तूरी का निर्यात करता है।
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अवैध शिकार के ये भी कारण
कस्तूरी का इत्र विख्यात है। सौंदर्य प्रसाधन के अलावा टीबी, आर्थराइटिस, दमा, मिरगी, निमोनिया, टाइफाइड, हृदय आदि रोग में 11 से ज्यादा जीवन रक्षक दवाओं में प्रयुक्त। आयुर्वेद के साथ ही यूनानी व तिब्बती औषधि विज्ञान में भी इसका बहुतायत में इस्तेमाल।
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कस्तूरी मृग का धरमघर प्रजनन केंद्र को वन विभाग अपनी सुपुर्दगी में लेगा। आयुष मंत्रालय से अंतिम दौर की वार्ता हो चुकी है। इसे नैनीताल जू में शिफ्ट किया जाएगा। इसका अस्तित्व खतरे में है लिहाजा संरक्षण के लिए यह कदम उठाया जा रहा है।
- राजेंद्र सिंह बिष्ट, मुख्य वन संरक्षक