प्राचीन पुस्तकालय का नहीं कोई सुधलेवा
डीके जोशी, अल्मोड़ा : कुमाऊं के प्राचीन एतिहासिक नगर में स्थापित जिला पुस्तकालय का कोई पुरसाहाल नहीं
डीके जोशी, अल्मोड़ा : कुमाऊं के प्राचीन एतिहासिक नगर में स्थापित जिला पुस्तकालय का कोई पुरसाहाल नहीं है। अनदेखी का आलम यह है कि पिछले डेढ़ दशक से भी अधिक समय से यहां पुस्तकालयाध्यक्ष का पद ही खाली पड़ा है। वहीं कई अन्य पदों पर भी यहां कर्मचारियों का अभाव बना है। भवन की छत जीर्ण-क्षीर्ण अवस्था में पहुंच गई है। इससे प्रतिदिन पाठकों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
लोगों के ज्ञान में अभिवृद्धि के उद्देश्य को लेकर नगर में लाइब्रेरी की स्थापना देश की आजादी के बाद सन् 1960 की गई थी। बुजुर्गो के अनुसार शुरुआती दौर में यहां पाठकों के लिए व्यवस्थाएं चाक-चौबंद थी, लेकिन पृथक उत्तराखंड राज्य गठन के बाद किसी भी सरकार ने पुस्तकालय पर कोई विशेष गौर नहीं फरमाया। इसके चलते पुस्तकालय लगातार बदहाली की ओर बढ़ता जा रहा है। 40 हजार से अधिक पुस्तकों को समेटे इस जिला पुस्तकालय की छत जीर्ण-क्षीर्ण हो गई है। इसके चलते मामूली बारिश में भी छत टपकने लगती है, और इसका असर भवन में रखी पुस्तकों पर पड़ता है।
एक ओर राज्य सरकार के बड़े-बड़े मंत्री व अधिकारी शिक्षा संबंधी गोष्ठियों और सेमिनार में जीवन में पुस्तकों का महत्व बताने से नहीं थकते हैं, वहीं इस प्रकार के ज्ञान के केंद्रों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। पुस्तकालय में जहां लाइब्रेरियन का पद पिछले 18 सालों से रिक्त पड़ा है, वहीं कैटलॉगर के पदों पर भी सालों से नियुक्तियां नहीं हो पाई है। प्रभारी पुस्तकालयाध्यक्ष, चौकीदार व एक दफ्तरी के भरोसे जिले के सबसे बड़े पुस्तकालय को छोड़ दिया गया है।
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हर साल होती है पुस्तकों की आमद
जिला पुस्तकालय में हर साल राजा राममोहन रॉय फाउंडेशन कलकत्ता से पुस्तकों की आमद होती है। यहां पुस्तकों की संख्या 40 हजार से भी अधिक है। यहां पुस्तकों के अनुरक्षण के लिए सर्वप्रथम छत के जीर्णोद्धार की जरूरत है।
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जिला पुस्तकालय के अनुरक्षण के लिए शासन व विभाग गंभीर है। भवन की छत के सुधारीकरण के लिए साल 2016 में प्रस्ताव भेजा गया है। प्रस्ताव को अनुमोदन मिलने तथा धनराशि स्वीकृत होने पर यह कार्य प्राथमिकता के आधार पर कराया जाएगा।
-एके सिंह, सीईओ, अल्मोड़ा