यहा राख से होता है पीलिया का इलाज
मनीष साह, गरमपानी आधुनिक वैज्ञानिक युग में वैदिक मंत्रों का विज्ञान। विशुद्ध आध्यात्म से जुड़ा ऐस
मनीष साह, गरमपानी
आधुनिक वैज्ञानिक युग में वैदिक मंत्रों का विज्ञान। विशुद्ध आध्यात्म से जुड़ा ऐसा विज्ञान जो गुरु-शिष्य परंपरा एवं विद्या देवी की उपासना पर आधारित है। 'ऊं नमो: आदेशा गुरु को जोहार, विद्या माता को नमस्कार..' आदि मंत्रों की शक्ति से तैयार भष्म (राख) से कोसी घाटी में पीलिया का इलाज किया जाता है। खास बात कि मंत्र विद्या में निपुण व्यक्ति ही इस कसौटी पर खरा उतर पाता है। विशेषज्ञों की मानें तो इसे साउंड थेरेपी कहा जाता है। मंत्र के उच्चारण से पैदा ध्वनि व कंपन रोगी के शरीर में जरूरी रसायन व हारमोंस का स्राव करता है जो संबंधित रोग के शमन का कारण बनता है।
सुनने-पढ़ने में बेशक अटपटा लगे पर विज्ञान के दौर में भारतीय वैदिक गुरु-शिष्य परंपरा के चलते मंत्र विद्या से झाड़ा विज्ञान जिंदा है। जी हां, कोसी घाटी के तल्ला वर्धो (बेतालघाट) गाव में मंत्रों की शक्ति से तैयार भभूत (विभूति) से पीलिया ठीक किया जाता है। वर्तमान में भभूत लगाने वाले जीत सिंह के ताऊ उमेश सिंह ने करीब चार दशक पूर्व इस विद्या को सीखा। उनके पिता दान सिंह को विरासत में यह विद्या प्राप्त हुई थी। गुरु-शिष्य परंपरा को आगे बढ़ाते हुए अब लगभग 60 वर्षीय जीत सिंह अपने पुत्र हरीश को यह विद्या सिखा रहे। साथ ही पीलिया के मरीजों का उपचार करते हैं। अभी तक वह पर्वतीय अंचल ही नहीं बल्कि मैदानी क्षेत्रों से पहुंचे लगभग तीस हजार लोगों का पीलिया दूर कर चुके हैं। इनमें मुस्लिम समुदाय के साथ ही कई राजनीतिक हस्तियां व अधिकारी भी शामिल हैं।
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ऐसे होता है इलाज
जीत सिंह गाय के गोबर से तैयार भभूत को मंत्रोच्चार के साथ लगाते हैं। 16 दिन का परहेज बेहद जरूरी होता है। इस अवधि में मरीज के लिए तिलक-चंदन लगाना, पीले व लाल रंग केवस्त्र पहनना वर्जित होता है। मगर मंत्र विद्या तभी तक असरदार रहती है जब तक निस्वार्थ सेवाभाव जिंदा है। जीत सिंह का दावा करते हैं कि व्यावसायिक लाभ उठाने की कोशिश करने पर मंत्र बेअसर हो जाता है।
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इसे साउंड थेरेपी कहते हैं। चूंकि भारतीय दर्शन व आध्यात्म सीधा विज्ञान पर आधारित है, लिहाजा मंत्र विद्या इसी का हिस्सा है। मंत्रों के उच्चारण से निकलने वाली ध्वनि व कंपन रोगी की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक होता है, ठीक वैसे ही जैसे ऊं का उच्चारण या शंखध्वनि। पुरातन समय में भी मंत्रोच्चार से कई रोगों के उपचार का उल्लेख मिलता है। मात्र मंत्र बोल देना काफी नहीं होता। सही उच्चारण ही इस विद्या की खासियत है और असरदार भी।
-डॉ. रमेश सिंह बिष्ट, पर्यावरणविद्
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यह आस्था से जुड़ा मामला है। इसका वैज्ञानिक आधार एलोपैथ नहीं मानता। पीलिया के कुछ रोग स्वत: ही ठीक हो जाते हैं। कुछ गंभीर मामले दवा के बगैर ठीक नहीं हो सकते।
-डॉ. एलएम उप्रेती, सीएमओ, नैनीताल